क्या खूब अडिग,उन्नति मार्ग पर हम
पर डोलती हमारी संस्कृति है|
पत्थरों को भी पूजता जो देश,
लाशों की हो रही यहाँ राजनीती है|
हरिश्चंद्र आदर्श जहाँ पर;
सत्य,वचन के रखवाले,
वहीँ खड़े काल्माड़ी,लालू;
घोटालों को खूब पचाते|
राम-राज, स्वपन बापू का
स्वाधीन देश में आएगा,
पर कांग्रेस के रहते क्या ये,
उम्मीद सफल हो पाएगा?
भूखे,नंगों की राजनीती औ,
अपने हित जो साध रहे,
आतितायियों को कबाब देते,
क्या छाप दिलों पर डाल रहे?
जनता भी सोकर जगती और
जगकर फिर सो जाती है,
सौ अन्ना भी हैं कम यहाँ
सौ "आज़ादों" की ये पाती है|
बढ़ें हो चाहें जी.डी.पी.
पर रेट में कछुएं प्यारे हैं,
और भ्रष्ट तो अम्बानी भी पर
ग्रोथ रेट तो न्यारे हैं|
मैंने भी क्या है खूब कही,
कहकर है पल्ला झाड लिया.
इस तंत्र से अलग हूँ,थोड़े हीं,
खुद हीं क्या है उखाड़ लिया?
इससे पहले ये नरक हो जाये,
खुद पर हीं एक एहसान करूँ,
भ्रष्ट रहित पात्र बनकर
भारत माँ का उद्धहार करूँ|
स्वाति वल्लभा राज
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