Sunday 12 August 2012

क्या खूब कही




क्या खूब  अडिग,उन्नति मार्ग पर हम
पर डोलती हमारी संस्कृति  है|
पत्थरों  को भी पूजता  जो देश,
लाशों की हो रही यहाँ राजनीती है|

हरिश्चंद्र  आदर्श जहाँ पर;
सत्य,वचन के रखवाले,
वहीँ खड़े काल्माड़ी,लालू;
घोटालों को खूब पचाते|

राम-राज, स्वपन बापू का
स्वाधीन देश में आएगा,
पर कांग्रेस के रहते क्या ये,
उम्मीद सफल हो पाएगा?

भूखे,नंगों की राजनीती औ,
अपने हित जो साध रहे,
आतितायियों को कबाब देते,
क्या छाप दिलों पर डाल रहे?

जनता भी सोकर जगती और
जगकर फिर सो जाती है,
सौ अन्ना भी हैं कम यहाँ
सौ "आज़ादों" की ये पाती है|

बढ़ें हो चाहें जी.डी.पी.
पर रेट में कछुएं  प्यारे हैं,
और भ्रष्ट तो अम्बानी भी पर 
ग्रोथ रेट तो न्यारे हैं|

मैंने भी क्या है खूब कही,
कहकर है पल्ला झाड लिया.
इस तंत्र से अलग हूँ,थोड़े हीं,
खुद हीं क्या है उखाड़ लिया?

इससे पहले ये नरक हो जाये,
खुद पर हीं एक एहसान करूँ,
भ्रष्ट रहित  पात्र बनकर 
भारत माँ का उद्धहार करूँ|

स्वाति वल्लभा राज

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Friday 3 August 2012

तुम हम हो;मैं,मैं हीं हूँ



रिश्तों में जितने गहरे गोते तुम लगाओ,
जरुरी नहीं हम भी डूबे उस तलक|
खुद को भूल,संग ले  तुम बढे जहाँ,
जरुरी नहीं छू लें हम भी वो फलक|


            पाते हो आज जो अपने हर हिस्से में 
                                                                             मुझे हीं हरसूं,
                                                                             जरुरी क्या,पाऊं मैं  भी हर  जज्ब में 
                                                                             तुम्हे हरसूं|

ये तुम हो जो हो अधूरे,
मुझ बिन हर  एहसास में |  
  

ये मैं नहीं जो जुड़ जाऊं 
हर बूंद क़ी प्यास में|

क्या मैं बुरा जो 
जोड़ लिया है तुमने खुद को
मेरे हीं अस्तित्व से,
मेरा वजूद तुमसे है जुदा
क्या हो जो हम में प्यार हो.....

स्वाति वल्लभा राज