Thursday 29 May 2014

दर्द लिखती हूँ




जज्बों पर पड़े ठन्डे सर्द लिखती हूँ 
दर्द लिखती हूँ,
फलक पर दर्द लिखती हूँ ।

गुम हुए अपने शब्द लिखती  हूँ  
दर्द लिखती हूँ,
फलक पर दर्द लिखती हूँ ।

रूह पर पड़े, फैले गर्द  लिखती हूँ 
दर्द लिखती हूँ,
फलक पर दर्द लिखती हूँ ।

हर ख्वाइशों के रंग ज़र्द लिखती हूँ 
दर्द लिखती हूँ,
फलक पर दर्द लिखती हूँ ।

दूध को बेआबरू करता मर्द लिखती हूँ 
दर्द लिखती हूँ,
फलक पर दर्द लिखती हूँ ।

स्वाति वल्लभा राज 

Sunday 25 May 2014

काश! मैं ताड़ होती

जब भी होता आंधी  का सामना 
काश ताड़ के पत्तों की तरह 
मैं भी कट  जाती कई भागों में,
फिर जीवन के थपेड़ों के वेग 
मुझे भी नहीं गिरा पाते । 
जरा सा झंझोरकर बस 
निकल जाते मेरे बीच से,
मैं भी निर्भीक हो 
खड़ी  होती अटल,
निर्मूल ना होती 
जड़ी रहती जड़ों से । 

या फिर होती 
बांस के पत्तों सी,
आंधी जिधर मोड़ती 
मुड़  जाती मैं भी ,
थपेड़ों के चंवर में 
डोलती तो जरूर 
पर उखड़ती नहीं 
अपने वजूद से । 

पर मनसा वचसा  
हिना की पत्ती,
पिसती जाती,
अपने खून के रंग में 
रंगती जाती,
खुश्बू में 
डुबोती जाती 
अस्तित्व मगर,
निर्मूल औ अचेत हो । 

स्वाति वल्लभा राज 

Wednesday 14 May 2014

एहसासों की अस्थियां





अनजाने में हीं शब्द
धराशायी कर देते हैं
मन को,
भावनाएं हो जाती हैं कुंठित
और वेदना से भरा मन
आंसुओं में ढुलकाते
चला जाता है
एहसासों की अस्थियां ।
जरुरी नहीं हर शब्द
सुगढ़ और सुन्दर हों,
जरुरत है सिर्फ़
शब्दों को दूर रखने की
उस धारीपन से जो
भेंदते चले जाते हैं
प्रेम से पगे ह्रदय को
और कर देते हैं संज्ञाशून्य
आपके हर एहसास को ।
स्वाति वल्लभा राज

Wednesday 7 May 2014

अधूरे-अनाम रिश्ते




समेटे हुये हूँ 
तुम्हारा स्पर्श
अपनी हर साँस में,
मेरे हर ख्वाब
ज़िंदा हैं
तुम्हारे नाम पर,
हर वो लम्हे
जो जिये थे
तुम्हारे आगोश में
आज भी मुझे
ज़िंदा रखे हैं,
प्रेम वो नहीं
जो नाम का मोहताज हो,
सिंदूर की लाली हीं नहीं
गढ़ सकती हमारी कहानी ,
कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं ।
स्वाति वल्लभा राज