रोहिणी डीपीएस के प्रिंसिपल ने अंतःवस्त्रों को लेकर कुछ नियम बनाये हैं जिस पर खूब चर्चाएं हो रही हैं| चर्चा होनी भी चाहिए| चर्चाएं इसलिए जरुरी हैं क्योंकि तथकथित ''बेहयाई/ बेशर्मी'' वाले शब्द ब्रा, पैंटी और स्लीप या स्पैगटि शब्दों को जो ठिठोली में उड़ा दिये जाते हैं, उसकी परिकल्पना के बजाय उसके मायनों पर ध्यान हो|
सबसे पहली बात स्कुल ने सिर्फ लड़कियों के लिए रूल नहीं लाये हैं| रूल लड़कों के लिए भी हैं| उन्हें भी सफ़ेद रंग की गंजी/बंडी अपने कमीज के नीचे पहनना है| हालाँकि हंगामा इस बात पर दिख नहीं रहा क्योंकि गंजी ना तो बेहयाई वाला शब्द है और ना इसे पहनने वाले '' my body my rule'' सूत्रधारक हैं|
एक घटना बताती हूँ| बात उस समय की है जब मैं 11 वी में थी| रांची का मौसम भी बेमौसम अचानक बरसात वाला अक्सर हो जाता है| असेम्बली की बेल बजी ही थी और झमाझम बारिश शुरू| कुछ बच्चे अभी स्कूल में एंटर ही कर रहे थे| एक लड़की जो शायद 9 की छात्रा लग रही थी, बैग को आगे अपने सीने से चिपकाये थोड़े तेज़ चाल से कॉरिडोर की ओर बढ़ रही थी| दौड़ी नहीं थी क्योंकि शायद फिसल कर गिरने का डर हो या अक्सर लड़कियों को दौड़ने की आदत नहीं होती|
लड़की पास आई तो समझ आया कि बारिश की वजह से उसकी शर्ट शरीर से बिलकुल चिपक गई थी उसने अंदर स्लिप नहीं पहना था तो पीठ साफ़-साफ़ झलक रहा था| लड़की थी न| बिना आईने में देखे समझ गई होगी कि अभी वो किस स्तिथि में लड़कों को दिख रही होगी!असहज होना स्वाभाविक था| हमारी प्रिंसिपल मैम भी वही बच्चों के साथ खड़ी थी और बातें कर रही थी| लड़की को देख लग रहा था कि अब रोइ की तब! प्रिंसिपल मैम तेज चाल से लड़की के पास पहुंची और अपना शॉल स्टाइल से उसके कंधे पर हाथ रख अपने ऑफिस की ओर बढ़ गई थी| हमारी मैम को सुषमा स्वराज मैम जैसे साड़ी पर शॉल या जैकेट पहनने की आदत थी|
इसके बाद जितनी लड़कियां थी उनके दिमाग में बिना फरमान जारी किये या समझाए ये बात समझ आ गई थी कि अंदर स्लीप पहनना ही पहनना है ऐसे किसी स्तिथि से थोड़ा ढंग से निपटने के लिए!
अगले हफ्ते मैम सीनियर सेक्शन की लड़कियों से मिली और आग्रह किया अंदर स्लीपप पहनने के लिए| हम सबने ये शिकायत भी की थी कि सीढ़ियों के नीचे लड़के खड़े होते हैं तो उतरते वक़्त बहुत असहजता लगती है| शायद वो स्कर्ट के नीचे झांकतने की कोशिश करते थे क्योंकि सीढ़ी की तरफ मुंडी करके खड़े होने से गणित का कोई सूत्र समझ आ जाएगा, ऐसा नहीं था| मैम ने कहा था राउंड्स लगाते वक्त और रिसेस में लड़के वहां खड़े नहीं होंगे ये तो गारंटी है पर दिन-भर सीढ़ियों के पास पहरेदारी पर किसी को बैठाना लड़को के मन में यौन आकर्षण तो पैदा करती ही फिर नये-नये तरीके ढूंढे जाते लड़कियों के अंदर झाँकने के! मनोविज्ञान के हिसाब से बिलकुल दुरुस्त बात थी| मैम ने स्कर्ट के नीचे टाईटस पहनने के लिए भी कहा था क्योंकि दौड़ने-उछलते समय भी निःसंकोच हो हम खेल-भाग सके| शायद उनके अनुभवी आँखों ने भांप लिया था कि लड़कियां कपडे सम्हालने के चक्कर में खेल पर ध्यान नहीं देती|
इसके बाद लड़कों के साथ भी एक सेशन हुआ था जिसमें क्या बात हुई ये लड़के ही जानते हैं|
विद्यालय में अंदर सफ़ेद गंजी या स्किन कोलोर की ब्रा और सफ़ेद स्लीप की अनिवार्यता कुछ नहीं बस इस स्थान की गरिमा बनाये रखने और असहज स्तिथियों से बचने के उपाय भर हैं|ऑफिस , स्कूल,कॉलेज या अन्य किसी ऐसे स्थान के अलावा लड़के बिना गंजी के शर्ट पहने या लड़कियां लाल ब्रा के ऊपर नीली टी-शर्ट! आप सहज हैं तो बिलकुल पहनिए! बीएस अपने कपड़ों को आत्म-विश्वास से carry करना जरुरी होता है|याद रखिये कुछ स्थान पर मर्यादा और उम्र के अनुसार काम करना ही सही होता है|
सबसे पहली बात स्कुल ने सिर्फ लड़कियों के लिए रूल नहीं लाये हैं| रूल लड़कों के लिए भी हैं| उन्हें भी सफ़ेद रंग की गंजी/बंडी अपने कमीज के नीचे पहनना है| हालाँकि हंगामा इस बात पर दिख नहीं रहा क्योंकि गंजी ना तो बेहयाई वाला शब्द है और ना इसे पहनने वाले '' my body my rule'' सूत्रधारक हैं|
एक घटना बताती हूँ| बात उस समय की है जब मैं 11 वी में थी| रांची का मौसम भी बेमौसम अचानक बरसात वाला अक्सर हो जाता है| असेम्बली की बेल बजी ही थी और झमाझम बारिश शुरू| कुछ बच्चे अभी स्कूल में एंटर ही कर रहे थे| एक लड़की जो शायद 9 की छात्रा लग रही थी, बैग को आगे अपने सीने से चिपकाये थोड़े तेज़ चाल से कॉरिडोर की ओर बढ़ रही थी| दौड़ी नहीं थी क्योंकि शायद फिसल कर गिरने का डर हो या अक्सर लड़कियों को दौड़ने की आदत नहीं होती|
लड़की पास आई तो समझ आया कि बारिश की वजह से उसकी शर्ट शरीर से बिलकुल चिपक गई थी उसने अंदर स्लिप नहीं पहना था तो पीठ साफ़-साफ़ झलक रहा था| लड़की थी न| बिना आईने में देखे समझ गई होगी कि अभी वो किस स्तिथि में लड़कों को दिख रही होगी!असहज होना स्वाभाविक था| हमारी प्रिंसिपल मैम भी वही बच्चों के साथ खड़ी थी और बातें कर रही थी| लड़की को देख लग रहा था कि अब रोइ की तब! प्रिंसिपल मैम तेज चाल से लड़की के पास पहुंची और अपना शॉल स्टाइल से उसके कंधे पर हाथ रख अपने ऑफिस की ओर बढ़ गई थी| हमारी मैम को सुषमा स्वराज मैम जैसे साड़ी पर शॉल या जैकेट पहनने की आदत थी|
इसके बाद जितनी लड़कियां थी उनके दिमाग में बिना फरमान जारी किये या समझाए ये बात समझ आ गई थी कि अंदर स्लीप पहनना ही पहनना है ऐसे किसी स्तिथि से थोड़ा ढंग से निपटने के लिए!
अगले हफ्ते मैम सीनियर सेक्शन की लड़कियों से मिली और आग्रह किया अंदर स्लीपप पहनने के लिए| हम सबने ये शिकायत भी की थी कि सीढ़ियों के नीचे लड़के खड़े होते हैं तो उतरते वक़्त बहुत असहजता लगती है| शायद वो स्कर्ट के नीचे झांकतने की कोशिश करते थे क्योंकि सीढ़ी की तरफ मुंडी करके खड़े होने से गणित का कोई सूत्र समझ आ जाएगा, ऐसा नहीं था| मैम ने कहा था राउंड्स लगाते वक्त और रिसेस में लड़के वहां खड़े नहीं होंगे ये तो गारंटी है पर दिन-भर सीढ़ियों के पास पहरेदारी पर किसी को बैठाना लड़को के मन में यौन आकर्षण तो पैदा करती ही फिर नये-नये तरीके ढूंढे जाते लड़कियों के अंदर झाँकने के! मनोविज्ञान के हिसाब से बिलकुल दुरुस्त बात थी| मैम ने स्कर्ट के नीचे टाईटस पहनने के लिए भी कहा था क्योंकि दौड़ने-उछलते समय भी निःसंकोच हो हम खेल-भाग सके| शायद उनके अनुभवी आँखों ने भांप लिया था कि लड़कियां कपडे सम्हालने के चक्कर में खेल पर ध्यान नहीं देती|
इसके बाद लड़कों के साथ भी एक सेशन हुआ था जिसमें क्या बात हुई ये लड़के ही जानते हैं|
विद्यालय में अंदर सफ़ेद गंजी या स्किन कोलोर की ब्रा और सफ़ेद स्लीप की अनिवार्यता कुछ नहीं बस इस स्थान की गरिमा बनाये रखने और असहज स्तिथियों से बचने के उपाय भर हैं|ऑफिस , स्कूल,कॉलेज या अन्य किसी ऐसे स्थान के अलावा लड़के बिना गंजी के शर्ट पहने या लड़कियां लाल ब्रा के ऊपर नीली टी-शर्ट! आप सहज हैं तो बिलकुल पहनिए! बीएस अपने कपड़ों को आत्म-विश्वास से carry करना जरुरी होता है|याद रखिये कुछ स्थान पर मर्यादा और उम्र के अनुसार काम करना ही सही होता है|