Thursday 28 June 2012

यशोधरा(चोका)


ये पंक्तियाँ मैथली शरण गुप्त जी कि “यशोधरा” से प्रेरित हैं|


    

जग कल्याण
हित लिये वो गए
आत्म-गौरव
औ मान की ये बात
कैसे बनी मैं
महालक्ष्य-बाधक
मुझ पर ये
असहय आघात
चोरी औ छिपे
गए अँधेरी रात,
नारी बाधक
मुक्ति मार्ग की कैसे
घोर व्याघात,
महा भिनिष्क्रमण
आभाषित था
स्वाभाविक विचार,
लुक छिप के
गृह त्याग निर्णय
शोभित क्या सिद्धार्थ?


स्वाति वल्लभा राज







Wednesday 27 June 2012

रूप घनाक्षरी


रूप घनाक्षरी,वार्णिक छंद के भेद हैं|इसकी रचना सिर्फ वर्ण गड़ना के आधार पर होती है| २६ से ज्यादा वर्णों कि संख्या वाले वार्णिक छंद, “दंडक” की  श्रेणी में आते हैं और २६ से कम वर्णों की  संख्या वाले “साधारण” की श्रेणी में| रूप घनाक्षरी में ३२ वर्ण होते हैं| १६-१६ वें वर्ण पर या प्रत्येक ८ वें वर्ण पर यति होते हैं|

स्वाति बिन मोती नहीं,
नाहिं हरि बिन कूक|
प्रीति बिन गति नहीं,
काहें  होवे फिर चूक?

हरि-कोयल
गति-मोक्ष
स्वाति वल्लभा राज

दोहा

दोहा, मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में जगण ( । ऽ । ) नहीं होना चाहिए। सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु होता है।



मन की ठास कसके नित,न कुछ मोहे सुझाय|
सावन की आस बीती,बारिश है भरमाय||

स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 26 June 2012

चोका


चोका [ लम्बी कविता] पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में  महाकाव्य की  कथाकथन शैली रही है । प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।इसका नियम इस प्रकार  है -

5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि  समापन करते समय  इस क्रम के अन्त में  7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । 
इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या    ही होगा  ।




नारी जीवन
फटी औ बदरंग
कोरी अधूरी
चुनर में लिपटी
मृतप्राय सी
सिसकती रहती
ये देखकर,
है आज भी अबला
शक्ति की पुंज,
कोख में हीं मरती
प्राण  दायिनी,
नहीं चढ़ती सिर्फ
दहेज-बलि
हर पल चढ़ती
अग्नि वेदी पे
बढती तो फिर भी
अग्नि पथ पे
पर धूमिल औ हैं
सुसुप्त एहसास|

स्वाति वल्लभा राज

Sunday 24 June 2012

हाय रे बोरवेल




बासठ तो कभी दो सौ फीट,
चालीस है तो कहीं पचासी घंटें|

प्रशासन ने तय किये
बेहतरीन काल सुशासन के|


संदीप,अमित,आरती,गीता
डूब गए बोरेवेल में|
सारिका.कार्तिक,किंजल,माही
भरे गए सक्सेस होल में|


२००६ से २०१२ तक
विकास की खूब गाथा रही|
प्रिंस और अंजू तो बचे
भागते भूत की लंगोट भली|


मत जागना अब भी  
हिंद के शासक|
गधे बेच के यूँ हीं सोते रहना|
ऐवें हीं खुले गड्ढों में औ
भविष्य को जिंदा गाड़ते रहना
स्वाति वल्लभा राज

Monday 11 June 2012

इश्क और मुश्क





इश्क और मुश्क
छिपाए नहीं छुपते थे किसी जमाने में,
आज सब एक्सपर्ट हैं
इन पर लेमिनेशन करवाने में|

महत्वाकांक्षाओं के परफ्यूम तले
दब जाती है इश्क की लहक|
और “लिप्सा परमो धर्मः” तले
कुचल जाती है मुश्क की महक|

धूल पड़े ऐसे इश्क,मुश्क पे
आग लगे ऐसे “पाक पदार्थों” पे
पर हम तो महिमा मंडित आज भी
ओनर किलिंग,सक्सेसफुल औ
सुपेरिओरिटी जैसे तमगों से|

स्वाति वल्लभा राज

Monday 4 June 2012

गुस्ताखी माफ (हाइकू)




पस्त  जीवन
फिर भी फील गुड
है प्रजा-तंत्र |


भूख,बेबसी
दमन औ हनन
है लोक-तंत्र |


चिथड़े ढकें
सकुचाई आजादी
क्यों नंगापन |


 
तू है मदारी
हम जमूरे फिर
क्यों प्रलोभन|

स्वाति वल्लभा राज