Wednesday 23 December 2015

सौंदर्य




अधर गुलाब पंखुरी
बोली कूक अनायास । 
ग्रीवा सुराही समदर्शी
मुख चपला आभास ।
नैन ,प्रतिबिम्ब राजीव
भौंह अर्ध चन्द्र समान ।
चाल मदचूर हस्तिनी
वक्ष विंध्य सा जान ।
कटि नदी घुमाव
चरण कोमल पर्ण ।
आभा चांदनी छींटकी
नारी तू सुवर्ण ।
स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 22 December 2015

​नाबालिग के मानवाधिकार सिर्फ लड़कों के लिए ?


जब कोई नाबालिग एक्स्ट्रा ordinary ​performance देता है किसी भी फील्ड में तो जैसे शिक्षा में तो exception माना  जाता है। जैसे दसवीं पास करना या डॉक्ट्रेट की उपाधि । तो फिर juvenile द्वारा नाकारात्मक काम करने में exceptional तरीके से देखने में इतनी बहस क्यों हो रही है? कोई भी आकस्मिक अपराध करता है उस समय निःसंदेह वह सजा की नहीं सोचता मगर क्या  ह्त्या , लूट पाट ,बलात्कार  जैसे अपराध सोच समझ  कर भी नहीं किये जाते ? तो अगर सजा के डर  से एक अपराध भी रुकता है तो मेरा मानना  है  ऐसे कानून सफल होंगे । 
 कोई कानून मानसिकता नहीं बदल सकता  मगर एक सन्देश जरूर देता है । 
एक सवाल भी साथ साथ 
जैसे male जुवेनाइल के सजा के लिए इतने statistics और research है ,उनके ''मानवाधिकार '' के लिए क्या वैसे हीं research और statistics हैं जो इस मानवाधिकार की बात करें जब बलात्कार की भुक्त  भोगी  नाबालिग लड़की हो ? जब नाबालिग लड़के के mind stability की चर्चा हो  रही , सुधरने की गुंजाइश की बात हो रही , decision  power की बात हो रही तो क्या एक नाबालिग पीड़िता के मानसिक दशा और मानवाधिकार की सोच रखते हुए उनके अपराधियों के ज्यादा सजा की बात नहीं होना चाहिए ?

स्वाति वल्लभा राज

देखा है मैंने ....


कौन कहता है सफ़ेद बाल अनुभव की निशानी हैं सदा 
इन्ही सफ़ेद बालों को बहुओं को जलाते देखा है ।
शिथिल पड़े झुर्रियों में सदियों की कहानी भी होंगी
मगर इन्हें बेटियों को इतिहास बनाते देखा है ।
काँपते आवाज़ में घुटे होंगी सपनें भी कई
इन्ही आवाज़ को दौलत का राग लगाते देखा है ।
सुबह शाम जो चौपाल पर पाठ सिखाया करते थे
उन्हीं सायों को रात में सबक भुलाते देखा है ।
स्वाति वल्लभा राज

Friday 18 December 2015

निर्भया नहीं ज्योति सिंह


 निर्भया कांड के लिए चित्र परिणाम

अब जितने नाबालिग बलात्कार करना चाहे वो कर सकते हैं । आधे केस में लड़कियां चुप हो जाएंगी या चुप करा दी जाएंगी । बाकी पकडे नहीं जाएंगे । जो एक आध पकडे जाएंगे उनके सजा के लिए  हम और आप कैंडल मार्च करेंगे ।  कुछ ''पढ़े लिखे लोग एक राजनैतिक मुद्दा बना सत्ता हासिल कर लेंगे  और तीन चार साल बाद उस अपराधी को ''नाबालिग कहँ छोड़ दिया जाएगा ।  संसद चलेगा नहीं जहां ऐसे कानून में संशोधन का प्रस्ताव पारित हो । जो राजनेता ऐसे हालातों को  मुद्दा  बना सत्ताधारी हुए हों वो उस नाबालिग के भविष्य सुधारने में लग जाएंगे और सबसे बड़ा सच ।  ज्योति सिंह को निर्भया बना दिया जाएगा और उस ''नाबालिग आत्मा '' की पहचान भी नहीं बताई जाएगी । ये वही '' मासूम नाबालिग'' है जिसने बलात्कार  किया तो किया रॉड  घुसाने वाला महान कृत्य कर अपनी मासूमियत का परिचय दिया ।क्या किसी नाबालिग के साथ कोई बालिग़ बलात्कार करे तो उसे सामान्य से ज्यादा सजा दी जाती है? यहां मानवाधिकार कहाँ  चला जाता है ? तो फिर मैं ये क्यों ना मानूँ  की यहाँ भी लड़के और लड़की में भेद भाव है और ये भेद भाव करने वाला हमारा कानून और सामाजिक सोच है ।   बधाई हो '' सहिष्णु, लोकतांत्रिक , धर्म निरपेक्ष भारत की । ऐसे हैं शब्दों में घिरे रहना । 
हालांकि ये मानवाधिकार का विषय है और साथ में जड़ें कहीं और पसरी हैं मगर विचित्र सामाजिक , राजनैतिक और कानूनी लचरता देख कर नियंत्रण खो बैठी ।निर्भया को निर्भया कहने की हिम्मत हो तब हीं कहना ।  मेरा सिर्फ एक विचार है - जो भी करे उसे एक जैसी सजा हो । कैसा नाबालिग और कैसा मानवाधिकार .. 

स्वाति वल्लभा राज 

Wednesday 16 December 2015

निर्भया काण्ड की बरसी

निर्भया काण्ड की बरसी । बहुत से लोग काफी कुछ कह रहे हैं । नाबालिग की रिहाई , १० हजार रूपये , दर्जी दूकान की व्यवस्था  ये सब एक अलग विषय है बहस का । मगर कितने लोगों ने इस विषय को गंभीरता से सोच कर सामाजिक तौर पर ना सही व्यक्तिगत तौर पर सोच बदलने का काम किया है ? क्या कदम उठाये हैं कि  एक लिंग विशेष के प्रति जो सोच और माहौल है उसे बदलने की कोशिश की है ? 

कुछ सवालों पर आत्म मंथन से हम समझ सकते हैं कि हमने कैसी श्रद्धांजलि दी है और फिर कोई निर्भया ना हो इसलिए हमने क्या किया है 
१.लिंग और योनि की पूजा करते हैं मगर क्या अपने टीनेजर बच्चों को सेक्स एजुकेशन के सम्बन्ध में बताना जरुरी समझे हैं? सेक्स  एजुकेशन का कत्तई मतलब नहीं कि  सेक्स करते कैसे हैं , ये बताना है । 
२. अगर पत्नी का मन ना हो तो क्या हम वाकई उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने पर दबाव नहीं डालते ?
३. अश्लील गाने जो सार्वजनिक स्थानों पर जोर जोर से बजाए जाते हैं कितनो ने कोसने के बजाय वहाँ जाकर खिलाफत की ?
४. क्या हमने अपने बेटों से बात कर उनके विचार जानने की कोशिश कि की वो इन सारे  विषयों को किस दृष्टिकोण से देखते हैं?
५. क्या खुद हमने किसी लड़की / औरत से बात करते वक्त या चैट करते वक़्त हर मर्यादा का ख्याल रखा और गलती से भी '' टाइम पास '' का या '' चांस '' लेने का नहीं सोचा ?

जड़ें सदियों से चली आ रही सोच और परम्पराओं में है। कितनी ऐसी परम्पराएँ हैं जो लड़कों के नाम पर  है? छोटी बातें नज़र अंदाज़ कर देना गलत है। कोई सीधे बलात्कार नहीं कर देता । जब उसने किसी लड़की को ये कहा  होगा की '' २८ से ३६ कर दूँगा '' तो क्या हुवा होगा ?
किसी के मांग में सिंदूर देख कर जब किसी ने ये कहा होगा ''ये प्लाट बिकाऊ नहीं है । अरे यार इसका तो भूमि पूजन हो गया है'' तो क्या हुवा होगा ? किसी लड़के ने जब किसी लड़की को छेड़ा होगा तो क्या हुवा होगा ? जब कोई अपने घर में ही लड़के लड़कियों का भेद भाव देखता होगा की कुछ भी हो लड़कियों को बोलने नहीं दिया जाता तो उसकी मानसिकता क्या हुयी होगी ?
जड़ें खोदें तनों को काटने से क्या होगा 

स्वाति वल्लभा राज 

Tuesday 27 October 2015

बेशक्ल ख्वाइशें

हर नुक्कड़ चैराहे पे टंगी 
मांस के लोथड़ों सी 
हमारी मृत संवेदनायें  
और तिस पर मुज़रा करती
हमारी बेशक्ल ख्वाइशें 
कंकाल सी  खोखली आदमियत 
हम पर अट्टहास करती है । 

स्वाति वल्लभा राज 

Monday 26 October 2015

गाय- धर्म और राजनीति से ऊपर

बचपन में  जो विद्यालय  और परिवार के बाद निबंध लिखना सीखा था तो वो गाय थी| तब शुरुआत कुछ यूँ हुआ करती थी- ‘गाय एक चौपाया पालतू जानवर है जिसे माँ भी कहते हैं’| आचार्य जी से जब पूछा  कि माँ क्यों तो उम्र के हिसाब से समझाया क्योंकि गैया का दूध पीकर हीं तो बड़ी हो रही हो ना|
बचपन गया| गाय का निबंध गया| फिर दिखने लगा –  ‘गाय माँ या माँस’ | ‘गाय की राजनीति , गाय पर राजनीति’ |मैं ये नहीं जानती कि गाय मे कितने देवता का वास है |मगर हाँ ,आज धर्म और राजनीति से ऊपर उठ कर इस विषय को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की जरुरत है |
एक गाय जिसने दूध देना बंद कर दिया हो उसे अमूमन  ६-७ हज़ार में बेंच दिया जाता है| मगर दूध ना देने वाली गाय भी हर महीने इतना  गोबर और गो मूत्र देती है जिससे विभिन्न माध्यम से ८-९ हज़ार हर महीने कमाया जा सकता है| समझने की जरुरत है कैसे?गोबर से बना प्राकृतिक खाद ज़मीं और पैदावार के लिये हर लिहाज़ में केमीकल खाद और यूरिया से बेहतर है| इससे ज़मीं की नमी ५०% तक बढती है इसके आलावा फसल कभी भी हानिकारक तत्व नहीं सोखते जिसको खाने से कोई हानि हो| चिड़ियों की  कई प्रजातियों पर रिसर्च से पता चला है कि उनके अंडे निषेचन से पहले हीं फुट जा रहे है और उनकी प्रजाति पर खतरे की घंटी बज रही है| मछलियों पर भी इनका काफी विपरीत प्रभाव है| और मनुष्यों में कई बीमारियों की भी वजह बन रही जिसमें पेट की बीमारियाँ मुख्यतः है|
गोबर गैस के रूप में एक प्राकृतिक ईंधन उपलब्ध है जो सी. एन.जी. को रिप्लेस कर सकती है और घरेलू ईंधन के रूप में भी उपयोग में आनी शुरू हो गयी है| कार की कंपनी टोयोटा इसे कार इंधन के रूप में लाने के लिये  प्रोजेक्ट पर काम कर रही| अमेरिका और यूरोप में इसकी शुरुआत  भी हो चुकी है|
हरियाणा में एक पायलट  प्रोजेक्ट चल रहा जिसके अंतर्गत इससे निकलने वाले ९५-९६% मीथेन का उपयोग बायो इंधन के रूप में घरेलू और छोटे मोटे ढाबों पर किया जने लगा है| हरियाणा में हीं लगभग ११०० बिना दूध देने वाली गायों की एक ऐसी गोशाला है जहाँ गो मूत्र और गोबर से सालाना लगभग साधे तीन करोड का टर्न ओवर होता है और जिसने १०० लोगों को रोजी रोटी दे रखी है|
इसके अलावा बायो वाटर का कांसेप्ट भी सामने आया है जिसमें गोबर को पानी के साथ मिलाकर मायक्रोबली ट्रीटेड पानी सिंचाई में काम आता है| जो निःसंदेह फसल के उत्पादन के लिये जरुरी है|
इंडियन एक्सप्रेस की हवाले से चाइना ने ८ अप्रैल २००९ को ऐसे दवाई की पेटेंट कराई है जिसमे गोमूत्र है और कैंसर के इलाज़ में उपयोगी साबित हो रही|
टाईम्स ऑफ इंडिया के अनुसार अमेरिका अब तक ४ ऐसी दवाएं पेटेंट करा चुका है जिसे ‘’कामधेनु अर्क’ नाम से राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के अनुसंधान केन्द्र और National Environmental Engineer Research Institute (NEERI) ने मिलकर बनाया| इस प्रयोग के अनुसार री - डिस्टिल्ड गोमूत्र में वो औषधीय गुण होता है जो DNA को oxidative  डैमेज से बचाता है जो कैंसर का कारक होता है|
आयुर्वेद में पेट सम्बन्धी कई बीमारियों के इलाज़ में गोमूत्र का उपयोग होता है|
एक नज़र दौडाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के  नज़र से भी| जापानी अध्ययन के अनुसार एक किलो बीफ पकाने में ३६ किलो  मात्रा में निकलती है  जितना २५० किलोमीटर यूरोपियन कार चलाने में ग्रीन हाउस गैस निकलती है| ये कोई मामूली मात्रा नहीं है|
इन पहलूओं पर गौर करके विवेक उपयोग करने की जरुरत है| धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर बहुत से विषयों को अन्य दृष्टिकोण से भी परखने की जरुरत है|
स्वाति वल्लभा राज



Wednesday 14 October 2015

रजस्वला ​ धर्म और कर्म कांड


लगभग हर धर्म में मासिक धर्म के समय स्त्रियां पूजा पाठ से अलग रहती हैं| हिंदू धर्म में इसके अलावा भी काफी चीजें वर्जित रहती हैं| जैसे आचार नहीं छूना है, पौधों को पानी नहीं देना, नीचे चटाई पर सोना, रसोईघर से दूर रहना आदि| मतलब स्नान करके ‘’शुद्ध’’ होने तक स्त्रियां अछूत रहती हैं| 

‘भविष्यत पुराण’ के ‘’ऋषि पंचमी ‘’ कथानुसार सुमित्र नाम का एक ब्राह्मण था उसकी पत्नी का नाम जयश्री था। मासिक धर्म के समय भी भोजन बनाकर खुद खाने और अपने पति को खिलाने की वजह से जन्म में जयश्री को कुत्ते और ब्राह्मण को बैल के रूप में जन्म लेना पड़ा |

भागवत पुराणानुसार देव राज इंद्र पर ब्रम्ह ग्यानी गुरु के ह्त्या का पाप लगा|वो इस पाप के बोझ को सह नहीं पा रहे थे तो जल,पृथ्वी,पेड़-पौधों और स्त्री को अपने इस ब्रम्ह ह्त्या के पाप का बोझ एक-एक चौथाई बाँट दिया| इन पाप के वहाँ से सबमे नाकारात्मक बदलाव आया परन्तु साथ मे इंद्र ने वरदान भी दिया सबको| स्त्रियों में रजस्वला प्रारम्भ हुवा और वरदान स्वरूप उन्हें पुरुषों की तुलना में काम सुख ज्यादा अनुभव करने का वरदान मिला| मतलब मासिक धर्म समय स्त्रियां ब्रह्म ह्त्या के पाप ढोती हैं इस वजह से वो कर्म कांड से दूर रखी जाती हैं| 

अब जरा वैज्ञानिक तथ्यों पर नज़र डालते हैं| साफ़ सफाई जरुरी है| मगर अछूत जैसा व्यवहार कहीं से भी उचित नहीं| त्यौहार के समय ना तो बेचारी भाग ले पाती हैं और शर्मिंदगी महसूस होती है वो अलग|
मगर स्त्रियां आज कल घर बाहर सब जगह काम कर रहीं तो इस तरह की सोच बदल तो रही हैं मगर अब अभी इन सबका बहुत असर है और काफी बड़े पैमाने पर है|

जरा सोचिये इतने सारे बंधनों के साथ किसी स्त्री के लिये ३ दिन रहना कितना मुश्किल है|कई जगह नहाना भी वर्जित होता है| इस समय सफाई जरुरी है मगर अंध विश्वास क्या कराता है| बाहर निकलना भी नहीं होता| बस एक कमरे में हीं रहना होता है|
धार्मिक विचारों और ग्रंथों के अनुसार रजस्वला स्त्रियां पहले दिन चंडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्म घातिनी और तीसरे दिन धोबिन स्वरूपा होती है | इसके पीछे क्या तथ्य है? इसी वजह से पति के साथ एक कमरे में रहना भी वर्जित होता है| मजे की बात तो यह है कि जाप और ध्यान में कोई मनाही नहीं है| मतलब ध्यान और जप से ज्यादा महत्ता कर्म कांड की हो गयी? अगर ब्रह्म ह्त्या वाला कोण देखे तो भी जो स्त्री दूसरों के पाप का वाहन कर रही वो भला अछूत कैसे हो सकती है? जो प्रक्रिया नए जीव के रचना के लिये जरुरी है भला वो प्रक्रिया अछूत कैसे हो सकती हैजरुरत है इन सब से ऊपर उठ कर चीजों को सही चश्मे से देखने की| ढोइए नहीं| बदलिए| और समझ बुझ कर|
स्वाति वल्लभा राज

Sunday 27 September 2015

प्रश्न


मैं सीता ।
अजन्मी, ब्याहता ,निर्वासिता
फिर हरी गयी । 
धर्म युद्ध में जीती गयी ।
नरोत्तम के उत्तमा के लिए
अग्नि परीक्षित हुयी ।
कुछ साँसों में हीं जीविता रही
फिर बहिष्कृत हुयी ।
धोबी का संदेह अपनी वामा पर
समझाने के बजाय
अपनी पत्नी तिरष्कृत हुयी ?
यह कौन सा राज धर्म था ?
यही गति थी तो अग्नि परीक्षण क्यों?
प्रजा पालक पर प्रजा का संदेह तो
क्या यही निदान उचित था ?
और आज तुम पुरषोत्तम और मैं सीता ।
स्वाति वल्लभा राज

Monday 14 September 2015

धर्म और मानसिकता

मैं ना तो धर्मांध हूँ और ना हीं नास्तिक । कर्म काण्ड को बढ़ावा भी नहीं देती मगर उस पर टीका टिप्पणी भी नहीं करती । आस्था, श्रद्धा और विश्वास की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है । मैं यहाँ पर अपना एक अनुभव लिख रही हूँ और अपेक्षा है की आप सबसे सुझाव मिलेगा मुझे ।
कल मैं तिरुपति गयी थी । भीड़ अपेक्षित थी । समय और परेशानी की वजह से ३०० रूपये वाला टिकट भी कराया था। दर्शन का समय सुबह के १० बजे का था। सुबह ९ बजे हीं मंदिर- प्रांगण में प्रवेश मिल गया। मन में बहुत उत्साह था क्योंकि शादी के बाद पहली बार पति के साथ किसी मंदिर में गयी थी । मन में हरी नाम लिए कतार बद्ध हो आगे बढ़ रहे थे। कुछ दूर तक तो सब सही लगा । फिर सारे सिक्योरिटी चेक के बाद कतार दो फिर तीन फिर चार फिर पांच हो गयी । एक कमरे जैसे जगह में जहाँ ऊपर ३५ लिखा था , कतार भीड़ में तब्दील हो गयी और भीड़ वहीँ रुक गया । पता चला शायद आरती वजह से दर्शन बंद है अभी । कुछ समय तक तो ठीक लगा । फिर भीड़ की जो औकात होती है ,वो दिखने लगा । गोविंदा गोविंदा करते कुछ लोग धकियाने लगे और आगे बढ़ने का प्रयास करने लगे। शरीर से शरीर को ऐसे रगड़ रहे थे की मुझे बहुत असुविधा होने लगी । मैंने आवाज़ ऊँची करके इसका विरोध किया । कुछ लोगों ने साथ दिया। और ठेलम ठेल तो बंद हो गयी मगर वो भीड़ जिसमे निह संदेह कुछ उन्मादी लोग भी थे , उनसे असुविधा होने लगी। १ घंटे उस कमरे में मेरी जो मानसिक दशा हुयी उसने सारा उत्साह रौंद डाला । कतार ना होने की वजह से समझ नही आ रहा था कौन इधर उधर से हाथ पैर लगा रहा । कई बार थोड़ी बहुत जगह बदली , बहुत बार बॉडी पोस्चर बदला । दीवार से टेक लगा के खड़ी हुयी फिर पहले आस पास के औरत और लड़कियों के चेहरे के हाव भाव पढ़ने की कोशिश की। कुछ के चेहरों पर हवाइयां उड़ती दिखी । मैं बहुत कुछ समझ गयी थी और सारी श्रद्धा काफूर हो गयी । धीरे धीरे भीड़ आगे बढ़ी और कुछ दूर बाद फिर सब कतार बद्ध हो गए । इस बार उलटे क्रम में चार, तीन, दो फिर एक । मैंने अपना मन पुनः एकाग्र करने का प्रयत्न किया। मगर हाय रे विकृत मानसिकता , जिसे मंदिर जैसा पवित्र प्रागण भी नहीं सुधार पाया । जैसे हैं मुख्य मंदिर में मैंने पाँव रखा , पीछे से कमर पर किसी ने हाथ फेरा , मैं फ़ौरन पलटी मगर समझ नही पायी । मन भर गया । फिर भी मन कड़ा कर राज से कहा की मुझे दोनों हाथों से घेर कर रखे।
दर्शन हुए और अजीब सी मनोदशा लेकर मैं लौट आई ।
मैं दावे से कह सकती हूँ ये मेरे अकेले का पहला अनुभव नहीं होगा । सिर्फ दो बाते कहना चाहती हूँ यहाँ ।
पहली मानसिकता और सोच बदलो । औरत सिर्फ मज़े की चीज़ नहीं है।
दूसरी ऐसे जगहों पर और सही मैनेजमेंट होना चाहिए । तीन बार सिक्योरिटी चेक करके बम तो लाने से रोक देंगे लोग मंदिर प्रांगण में परन्तु जो लोगों के पप्रांगण में भी ब्यभाचरिता को लेकर प्रवेश करते हैं , उन पर भी अंकुश अवश्यम्भावी है । कतार ही रखें। हो सके तो ५०-६० लोगों के cluster हीं प्रवेश करने दे और मैनेजमेंट की लोग हर जगह हों क्योंकि निर्भीकता, भीड़ और विकृत सोच तीनों अगर इकठे हो तो परिणाम बुरा ही होता है ।
अगर किसी के धार्मिक भावना को ठेस पहुंची हो तो माफ़ी चाहूंगी ।
स्वाति वल्लभा राज

Tuesday 25 August 2015

सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है

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सूरत-ए -आम और सीरत-ए -मामूली निकले हम तो क्या
हँस के ज़रा कर दो बिदा,
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है ।
सुकून का हर गुल रखा तुमसे दूर हमने 
नालायकी के चादर में लिपटी,
आज हमारी औकात निकली है ।
दोज़ख सी ज़िंदगी का कर दिया था बसेरा जहां
ख़ुदा के दर से आज तुझको
प्यारी सी सौगात निकली है ।
सफ़ेद जोड़ों वाली आज हमारी बारात निकली है।
स्वाति वल्लभा राज

Wednesday 19 August 2015

तेरे इश्क़ में हम शहर बने

रविश जी के '' इश्क़ में शहर होना'' पढ़ने के बाद 
''इश्क़ में कहीं ताज़ और कहीं महल बने
कहीं अनकहे बोल और कहीं ग़ज़ल बने
सदियाँ भी कम पड़ी,और सिर्फ कहीं पहर बने 
हीर मजनूँ ना सही, तेरे इश्क़ में हम शहर बने '…
स्वाति वल्लभा राज

Friday 7 August 2015

बलात्कार

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नहीं दिखा तुम्हे मेरा दर्द,
मेरी पीड़ा और मेरा डर 
मेरे घुटते शब्दों के साथ 
मेरा मरता वजूद
करते गए तुम अनदेखा । 
दिखे तुम्हे सिर्फ मेरे दो उभार 
जो  सींचते है सृष्टि का आधार 
पर तुम्हारे लिए तो वो थे 
गुलाब के फूल ,मखमल में लपेटे 
रौंदते गए जिसे तुम ,
और दिखा तुम्हे 
अपनी मर्दानगी साबित करने का द्वार 
वो द्वार जो नयी संरचना को जन्म देती है 
उसमे तुम रचते गए 
कलंक, घृणा ,मद |
तिस पर भी जी नहीं भरा 
तो नोच खसोट दिया मेरा जिस्म ,
रक्त रंजीत मेरा शरीर,आत्मा और अस्तित्व 
पड़े रहे निढाल,
और अट्टहास करता शब्द ''बलात्कार '' 

स्वाति वल्लभा राज 

Tuesday 4 August 2015

मनुष्य



बेहयाई में नहायी तुम्हारी निगाहें 
बेशर्मी में लिपटी तुम्हारी सोच 
''अहम् '' में सिमटा सम्पूर्ण  वजूद 
निकृष्ट से भी गिरे कर्म 
और हसास्यपद विचार ''मनुष्य '' होने का 

स्वाति वल्लभा राज 

Thursday 23 July 2015

चाह नहीं अरमान बनो तुम



बदलते वक़्त की पहचान बनो तुम 
पशु नहीं इंसान बनो तुम ,
ज़िंदगी में कठिनाइयां हैं तो क्या 
लक्ष्य पर चमकते  निशान बनो तुम 

चाह नहीं अरमान बनो तुम 
खुशीयों  का प्यारा जहाँ बनो तुम ,
हर शाह को जो मात दे 
वो आगाज़ नहीं अंजाम बनो तुम । 

स्वाति वल्लभा राज 

Saturday 14 February 2015

पाती

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​​ऐ पाती तू ले जा संदेसा
मेरे पिया आँगन ,
इह लोक पराया देस लागे
उह लो हीं तो आपन ।
मोह -मरन  से बंधन-मुक्त ;
उन्मुक्त, मैं विचरन  करती ,
भू मंडल पर छिन -छिन अकुलित
व्यथित,गुन -दोस आंकलन करती ।
भ्रमर सा भ्रमित उद्विग्न मन;
भटके हर लत-कली -डाल -पुष्प ,
चित पर अँधियारा घन घोर पी
जन्म दत्तक -पालक सब हुए रुष्ट ।
पाती तू ले जा अश्रु ये
रक्त -रंजित कलुषित देह ये ,
दर्पण सा निश्छल प्रेम -पगा
कोरा चित, पी को देय ये।

स्वाति वल्लभा  राज



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Sunday 18 January 2015

मन के मोती

मन के मोती 
कभी टूटते 
और चुभते  जाते हैं 
आँखों में, 
कभी पिरोते चले 
चले जाते  हैं ​
खुद-ब -खुद 
और बन  जाती है 
सुन्दर माला । 
पर जीवन 
सुन्दर माला हीं  तो  नहीं,
अपितु टूटे मानकों की चुभन 
पर भी मीठी मुस्कान है 

स्वाति वल्लभा राज