Sunday 16 March 2014

नारी-रंग




सदा अपने अस्तित्व के खून में सनी ​
​मैं लाल रंग,
व्योम का विस्तार पर,सिमटी सकुचायी 
मैं नीला रंग,
सरसों के खेत सी पसरी,पर लाही संग 
मैं पीला रंग,
बाहर से हरियाली,अंदर ठूँठ 
भयी मैं हरा रंग,
गुलाबों सी महक व काया,कंटक सा चुभता मन 
मैं गुलाबी रंग,
दुनिया  रंग-बिरंगी करती,खुद बदरंग 
मैं नारी-रंग । 

स्वाति वल्लभा राज 

Wednesday 5 March 2014

चटपटे ये आचार



स्वयं हित साधने में
सब यहाँ कलाकार हैं,
दूसरों को कुचलने का
हमको तो अधिकार है |

कामुक पशु,पंजीकृत हम
आचरण व्याभिचार है,
जो बने सरताज इसमें
तो फिर बलात्कार है|



भ्रष्टाचार, दुराचार;
चहुँ ओर हाहाकार है,
मद के नशे में चूर
किन्तु, धर्म औ संस्कार है|

आम -निम्बू के जैसे आज
चटपटे ये आचार हैं,
पर इंसान सुन- समझ तू
ये दानवी- व्यवहार है|

स्वाति वल्लभा राज