Monday 9 May 2011

hit and trial

कभी सोचा है ज़िन्दगी इतनी बदहवास सी क्यों भागी जाती है? हम क्यों इसपे लगाम कसने की कोशिश करते है और ये बेलगाम घोड़े की तरह भागी चली जाती है. पर क्या जिंदगी वाकई ऐसी ही है?चलिए  जिंदगी को एक  नए नजरिये से देखते है. philosphy ,practical , hypothetical आधार पे बहुत  नापा तौला जिंदगी को पर अब इसे एक नया आयाम देते है .आगाज़ अलग हो तो शायद जिंदगी  का अंजाम भी अलग हो. हर कदम पे जीवन हमें नए सवाल से रु-ब-रु कराती है.हम उसे फायदे-नुकसान,सही-गलत के तराजू पे तौलना शुरू कर देते है.हम स्वार्थी होके भी खुद का नहीं  सोच पाते.और दुनियादारी के भंवर में  फंस के सही का गलत और गलत का सही कर देते है
ऐसा नहीं लगता ज़िन्दगी गणित है.अगर हिसाब किताब और calculation सही तो RESULT सही आने की पुरी  संभावना . मगर किसी step पे थोडा सा भी mind divert हो जाये फिर चाहे उसके बाद पुरे calculation के  process में आप alert ही क्यों ना रहे result सही कभी नहीं   आ सकता और जिंदगी का अगला  सवाल आपको  पहले  सवाल पे  fully concentrated होने नहीं देता.और जिंदगी के जिस सवाल का जवाब नहीं पता वहा hit and trial method .समय के टिक-टिक के साथ जिंदगी के जीत की मुस्कान तेज और कई बार हम एक failure student की तरह अपना mark -sheet पकडे खुद में सकुचाये सोचते है अब कौन सा प्रश्न आएगा?                                                                        

कहने का अभिप्राय ये की अगर जिंदगी गणित है तो हमें सिर्फ एक ही बात full marks दिला सकती है और वो है practice . So keep trying .never give up and add one more victory to our life day by day .....

Monday 2 May 2011

khwaab ya haqeeqat

जिंदगी हर पल मुस्कुराती,गुनगुनाती कितनी अच्छी लगती है न? उदासी 
 से कोसो  दूर अपने धुन अलापती जिंदगी,खुद में ही पूर्णता को पाती जिंदगी.मगर हकीकत की धरातल तो कुछ और ही बयान करती है.हम अपने ख्यालो के उड़ान को धीमे नहीं करना चाहते और ना हकीकत को जानना चाहते है सिर्फ अपने सतरंगी इन्द्र-धनुष पे सवार चलते चले जाते है,ना जाने जिंदगी से दूर या उसके करीब.कई बार हमारी चेतन अवस्था हमें आगाह करती है लेकिन हम सुसुप्त अवस्था या फिर जाग्रत अवस्था के ही अर्ध-चेतन अवस्था में मग्न रहते है.हमारी दृष्टि रेगिस्तान के मरीचिका से दिग भ्रमित हो आगे बढ़ती जाती है ये विश्वास लिए की मंजिल अब दूर नहीं मगर हर कदम हमें पथ-भ्रमित करने के साथ हमारी हिम्मत तोड़ने लगती है और हम निराशा के बादल से ढकते चले जाते है.जब तक हमें एहसास होता है की हम दिशा भटक चुके है तब तक शायद देर हो चुकी होती है. हम अपने सपनो की दुनिया से बाहर निकलना चाहते है लेकिन उन सपनो की गाठे इतनी मजबूत हो चुकी होती है की ना तो हम उन्हें खोल पाते है और ना ही तोड़ पाते है; बस खड़े ही रह जाते है उस जगह पे बेबस और लाचार. सपने देखना अच्छी बात है मगर उन्हें ही हकीकत मान लेना  जिंदगी का रस खोने जैसा है. जिंदगी को जीने के लिए ज़मीनी हकीकत से जुड़े रहना निहायत ही जरुरी है. सपने देखो मगर उनमे जान डाल के. मृग-मरीचिका ने तो सीता माँ को भ्रमित कर रामायण की नीव रख दी थी जो किसी महा-भारत से कम साबित नहीं हुई फिर हम तो इंसान है. खुल के जियो दोस्तों ,खूब सपने भी देखो मगर हकीकत का सामना करते हुए और सपनो को हकीकत में बदलने के लिए अपना धैर्य और ताकत सही दिशा में लगाते हुए. फिर ना तो मंजिल दूर होगी और ना ही जिंदगी.