सफ़ेद चादर में लपेटे हूँ
अपनी हसरत,
सबसे खूबसूरत एहसास,
जिसमें तुम निर्भीक हो
खेल रही थी मैदान में ,
बिना डर के
भर रही थी रंग अपने
हर ख्वाब में,
कुलाँचे मार रहे थे
हर उमंग,
तुम खुश थी,
आज़ाद थी ,
बेख़ौफ़ थी ,
हैवानियत के नज़र से दूर थी
बचपन,यौवन,बुढ़ापा
सब जीया तुमने भरपूर
और बेदाग़ रहा तुम्हारा शरीर,
पर जानती हूँ
यह दिवा स्वप्न है
माफ़ करना
मेरी बच्ची इस ख़ौफ़ज़दा
ज़िंदगी के लिए ।
स्वाति वल्लभा राज