Saturday, 29 December 2012

एक पाती-माँ के नाम



माँ जब तुम्हे पता चले मैं लड़की हूँ तो  मुझे कोख में हीं  मार देना ...मुझे इस समाज की दरिंदगी  से बचा लेना ..क्योंकि मैं पहली मौत तो वहीँ मर चुकी होउंगी जब तुम ये पता करने जाओगी  की मैं लड़का हूँ या लड़की ...माँ, तुम सबसे पहले वहीँ मुझे बता दोगी कि मै अवांछित हूँ ...मैं कैसे भी अगर धरती पर आ भी गयी तो क्या होगा? तुम्हे तो हमेशा लगेगा न की मैं लड़की हूँ ...जब जनम देने वाले हीं जनम देने से पहले मुझे निकृष्ट मान चुके होंगे तो मैं बाद बाकियों से कैसे अपेक्षा रखूं? जैसे जैसे मैं बड़ी होउंगी मुझे संस्कार दिए जायेंगे ..संस्कार मतलब-''देखो लड़की हो,सहना सीखो ..क्या हुआ जो किसी ने कुछ कह दिया ...लड़का नहीं हो जो लड़ोगी ...अरे चाचा ने कुछ बतमीजी की,चुप रहो बेटी परिवार टूट जाएगा ...भाई कुछ कह रहा है तो चुप-चाप सुन लो ...सबकी इज्जत करो '' 

मान इज्जत तो करूँ  पर अपने आत्म-सम्मान और इज्जत की बलि देकर? ....

माँ भाई 9 बजे तक बाहर रह सकता है ..मैं नहीं ..क्या माँ  ऐसा नहीं हो सकता की सबके भाई हीं  घर में रहें और मैं और मेरे जैसी लड़कियां बाहर बेख़ौफ़ घूमें? हर बार,हर बात पर मैं हीं रोकी जाउंगी ...सही रहकर भी दुत्कारी जाउंगी ...जी ना पाऊँगी  और ना मर पाऊँगी ...

हर नज़र से कैसे बचूंगी? हर वक़्त अपना संस्कार कैसे साबित करुँगी ? हर पल डर  के साए में पलने से तो अच्छा है माँ,तुम मुझे कोख में उसी पल मार देना जब तुम ये पता करने जाओ कि मैं लड़का हूँ या लड़की ....

स्वाति वल्लभा राज 

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