Wednesday, 5 March 2014

चटपटे ये आचार



स्वयं हित साधने में
सब यहाँ कलाकार हैं,
दूसरों को कुचलने का
हमको तो अधिकार है |

कामुक पशु,पंजीकृत हम
आचरण व्याभिचार है,
जो बने सरताज इसमें
तो फिर बलात्कार है|



भ्रष्टाचार, दुराचार;
चहुँ ओर हाहाकार है,
मद के नशे में चूर
किन्तु, धर्म औ संस्कार है|

आम -निम्बू के जैसे आज
चटपटे ये आचार हैं,
पर इंसान सुन- समझ तू
ये दानवी- व्यवहार है|

स्वाति वल्लभा राज

4 comments:

  1. नहीं कोई बदलने वाला ये ही
    सच का ताज़ा समाचार है
    खूबसूरत अभिव्यक्ति बिटिया
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. बहुत गहन और शानदार

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