स्वयं हित साधने में
सब यहाँ कलाकार हैं,
दूसरों को कुचलने का
हमको तो अधिकार है |
कामुक पशु,पंजीकृत हम
आचरण व्याभिचार है,
जो बने सरताज इसमें
तो फिर बलात्कार है|
भ्रष्टाचार, दुराचार;
चहुँ ओर हाहाकार है,
मद के नशे में चूर
किन्तु, धर्म औ संस्कार है|
आम -निम्बू के जैसे आज
चटपटे ये आचार हैं,
पर इंसान सुन- समझ तू
ये दानवी- व्यवहार है|
स्वाति वल्लभा राज
नहीं कोई बदलने वाला ये ही
ReplyDeleteसच का ताज़ा समाचार है
खूबसूरत अभिव्यक्ति बिटिया
हार्दिक शुभकामनायें
धन्यवाद माँ. :)
Deleteबहुत गहन और शानदार
ReplyDeleteआभार इमरान जी...:)
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