भरा है मन मेरा अभी खालीपन से|
कभी यादों के लुका-छिपी खेलते बचपन से,
कभी कल को सजाती,आज घिसी उबटन से|
कभी महक समेटे भी विषधरों के बीच खड़े चन्दन से,
कभी जीवन की नरमी का साथ देती सुखी हुई परथन से,
कभी भीड़ में भी एकांत के सिहरन से|
कभी उम्मीदों के चिथड़े ढकती उतरन से,
कभी किसी का पेट भरती थाली के जूठन से,
कभी भावनाओं को भी जमती हुई जामन से|
कभी सपनों का हकीकत की नदी में विसर्जन से,
कभी समाज के टूटे हुए मतलबी बंधन से,
भरा है मन मेरा अभी खालीपन से|
स्वाति वल्लभा राज
सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें