मन बहुत विचलित है आज
कि दर्द भी है हो रहा|
जागे थे जिस ख्वाब से वो
ख्वाब खुद ही सो रहा|
क्या करूँ,जाऊं कहाँ अब
दिल हर पल सोचता|
हरसूँ तो है बस रुदन ही,
दिशा-ज्ञान भी खो रहा|
उठ तो फिर से हे!पथिक मन
बढ़ते जा फिर चल-चला-चल|
गिला करके क्या मिला
फिर हश्र चाहे जो रहा|
स्वाति वल्लभा राज
jeevan ka ek kafi sahi n sachha chehra hai ye.. chahe jo bhi ho ye jeevan ki gadi kabhi nhi rukti na ruk sakti hai..
ReplyDeleteक्या करूँ,जाऊं कहाँ अब
ReplyDeleteदिल हर पल सोचता|
हरसूँ तो है बस रुदन ही,
दिशा-ज्ञान भी खो रहा|
Bahut Sunder...Kamal ki panktiyan
गिला करके क्या मिला
ReplyDeleteफिर हश्र चाहे जो रहा|
बहुत सुन्दर शुभकामनाएँ
http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteशुक्रवार : चर्चा मंच - 576
जानते क्या ? एक रचना है यहाँ पर |
खोजिये, क्या आपका सम्बन्ध इससे ??