है पूजित संसार में, राधा मीरा का प्रेम
सावित्री अनुसुइया बनी, पतिव्रता की हेम|
अनुगामिनी जानकी थी, पति के साहचर्य को
लक्ष्मण संग रहे सदा, भातरी प्रेम वशीभूत हो|
निर्वाहित धर्म सब जन द्वारा
अनुकरणीय पथ, हर पात्र प्यारा|
एक छवि क्यों विस्मित हुई
त्याग की प्रतिमा, उपेक्षित हुई|
क्या मोल उस विरहणी के संताप का
परित्यक्ता एकाकी जीवन के हिसाब का|
क्या सर्वोच्च नहीं उर्मिला का बलिदान
वो जोगन जिसने दिया त्याग का दान|
हर पल विरह की आग में जलती
तथापि भाव शुन्य न होती|
त्याग की कुंड में खुद को होम करती,
उर्मिला, तेरे मौन साधना को नमन करती|
swati vallabha raj
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
त्याग की कुंड में खुद को होम करती,
ReplyDeleteउर्मिला, तेरे मौन साधना को नमन करती|... बहुत बढ़िया
उर्मिला का जीवन स्वयं एक अनुपम तप है... वाकई.. मौन साधना को नमन!
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