न तपन वो ठंडी पड़ी अरमानों के लाश पर भी,
न लगन वो हर हार के मुलाकात पर भी|
बेटों की क्षमता नहीं हर दर्द पर मुस्कान की,
संसार की गतिमयता में कृति के योगदान की |
सहनशीलता के कंटील चरम पायदान पर,
सुता हीं हरसू विराजित,त्याग के स्थान पर|
हे सृजक! प्रबुद्ध सृजन के नींव हेतु,
अगले जनम मोहे बिटिया हीं कीजौ |
स्वाति वल्लभा राज
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteधन्यवाद संगीता जी.....
Deleteबहुत खूब बात काही है आपने |
ReplyDeleteप्रदीप जी,हम बात कहते तो हैं मगर समझने वालों की कमी है।धन्यवाद।:)
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteपूनम जी,पधारने के लिए धन्यवाद।आप सबका प्यार यूँ हीं बना रहे।:)
Deleteहे सृजक! प्रबुद्ध सृजन के नींव हेतु,
ReplyDeleteअगले जनम मोहे बिटिया हीं कीजौ |
क्या लिखूं कमेन्ट .. ये पंक्तियाँ खुद में सारा सार समाए हुए हैं ..
धन्यवाद मधुरेश जी।हम सब असमंजस में पड़ जाते हैं,ऐसा कुछ पढ़ कर।:)
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ReplyDeleteदीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल 12/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..
ReplyDeleteहे सृजक! प्रबुद्ध सृजन के नींव हेतु,
ReplyDeleteअगले जनम मोहे बिटिया हीं कीजौ |......ati sundar....
sundar aur utsahvardhk prastuti,......"mohe kevl bitiya hi dije....deepavli ki subhkamnaye
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