जालिम तेरे प्यार ने मैडम बना दिया
न घर की रही न घाट की
दर बदर फिरता,कुत्ता बना दिया ,
जो भौंकने लगी,बात बे बात हीं
औ धौंसियाने लगी मैडम गिरी,
नभ से हल्के सरका,खजूर पर टिका दिया|
हाय ये छलते -घोलते इश्क
और इशिकियाने के निराले ढंग,
मन में काला रंग घोल, मैला बना दिया|
स्वाति वल्लभा राज
ज़बरदस्त लिखी हैं स्वाती मैडम :)
ReplyDeleteसादर
आपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
कल 09/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पढ़ कर बहुत मजा आया |
ReplyDeleteआशा