Saturday, 7 June 2014

छदम लिखती हूँ


छदम लिखती हूँ ,
कभी प्रपंच लिखती हूँ ,
लिखूं ना गर भाव , 
तभी कलंक लिखती हूँ ,

सोना उगल भी दें शब्द तो क्या 
भाव में जो पगे  नहीं ,
वो शब्द बेमोल हीं 
तृप्ति  में जो पके  नहीं ,


लूट लें वाह- वाही हीं पर 
अलंकृत, बेमोल शब्द 
गढ़ नहीं सकते ह्रदय में 
भाव सुन्दर और खरे । 

स्वाति वल्लभा  राज 

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कब होगा इंसाफ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. लूट लें वाह- वाही हीं पर
    अलंकृत, बेमोल शब्द
    गढ़ नहीं सकते ह्रदय में
    भाव सुन्दर और खरे ।

    बिलकुल सही।

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  3. सार्थक व् सुन्दर अभिव्यक्ति .बधाई

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  4. सच है, भावनाओं से ही शब्दों के मैने हैँ, अन्यथा वे कुछ भी नहीं!

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