छदम लिखती हूँ ,
कभी प्रपंच लिखती हूँ ,
लिखूं ना गर भाव ,
तभी कलंक लिखती हूँ ,
सोना उगल भी दें शब्द तो क्या
भाव में जो पगे नहीं ,
वो शब्द बेमोल हीं
तृप्ति में जो पके नहीं ,
लूट लें वाह- वाही हीं पर
अलंकृत, बेमोल शब्द
गढ़ नहीं सकते ह्रदय में
भाव सुन्दर और खरे ।
स्वाति वल्लभा राज
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कब होगा इंसाफ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteलूट लें वाह- वाही हीं पर
ReplyDeleteअलंकृत, बेमोल शब्द
गढ़ नहीं सकते ह्रदय में
भाव सुन्दर और खरे ।
बिलकुल सही।
सार्थक व् सुन्दर अभिव्यक्ति .बधाई
ReplyDeleteसच है, भावनाओं से ही शब्दों के मैने हैँ, अन्यथा वे कुछ भी नहीं!
ReplyDelete