Monday, 26 October 2015

गाय- धर्म और राजनीति से ऊपर

बचपन में  जो विद्यालय  और परिवार के बाद निबंध लिखना सीखा था तो वो गाय थी| तब शुरुआत कुछ यूँ हुआ करती थी- ‘गाय एक चौपाया पालतू जानवर है जिसे माँ भी कहते हैं’| आचार्य जी से जब पूछा  कि माँ क्यों तो उम्र के हिसाब से समझाया क्योंकि गैया का दूध पीकर हीं तो बड़ी हो रही हो ना|
बचपन गया| गाय का निबंध गया| फिर दिखने लगा –  ‘गाय माँ या माँस’ | ‘गाय की राजनीति , गाय पर राजनीति’ |मैं ये नहीं जानती कि गाय मे कितने देवता का वास है |मगर हाँ ,आज धर्म और राजनीति से ऊपर उठ कर इस विषय को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की जरुरत है |
एक गाय जिसने दूध देना बंद कर दिया हो उसे अमूमन  ६-७ हज़ार में बेंच दिया जाता है| मगर दूध ना देने वाली गाय भी हर महीने इतना  गोबर और गो मूत्र देती है जिससे विभिन्न माध्यम से ८-९ हज़ार हर महीने कमाया जा सकता है| समझने की जरुरत है कैसे?गोबर से बना प्राकृतिक खाद ज़मीं और पैदावार के लिये हर लिहाज़ में केमीकल खाद और यूरिया से बेहतर है| इससे ज़मीं की नमी ५०% तक बढती है इसके आलावा फसल कभी भी हानिकारक तत्व नहीं सोखते जिसको खाने से कोई हानि हो| चिड़ियों की  कई प्रजातियों पर रिसर्च से पता चला है कि उनके अंडे निषेचन से पहले हीं फुट जा रहे है और उनकी प्रजाति पर खतरे की घंटी बज रही है| मछलियों पर भी इनका काफी विपरीत प्रभाव है| और मनुष्यों में कई बीमारियों की भी वजह बन रही जिसमें पेट की बीमारियाँ मुख्यतः है|
गोबर गैस के रूप में एक प्राकृतिक ईंधन उपलब्ध है जो सी. एन.जी. को रिप्लेस कर सकती है और घरेलू ईंधन के रूप में भी उपयोग में आनी शुरू हो गयी है| कार की कंपनी टोयोटा इसे कार इंधन के रूप में लाने के लिये  प्रोजेक्ट पर काम कर रही| अमेरिका और यूरोप में इसकी शुरुआत  भी हो चुकी है|
हरियाणा में एक पायलट  प्रोजेक्ट चल रहा जिसके अंतर्गत इससे निकलने वाले ९५-९६% मीथेन का उपयोग बायो इंधन के रूप में घरेलू और छोटे मोटे ढाबों पर किया जने लगा है| हरियाणा में हीं लगभग ११०० बिना दूध देने वाली गायों की एक ऐसी गोशाला है जहाँ गो मूत्र और गोबर से सालाना लगभग साधे तीन करोड का टर्न ओवर होता है और जिसने १०० लोगों को रोजी रोटी दे रखी है|
इसके अलावा बायो वाटर का कांसेप्ट भी सामने आया है जिसमें गोबर को पानी के साथ मिलाकर मायक्रोबली ट्रीटेड पानी सिंचाई में काम आता है| जो निःसंदेह फसल के उत्पादन के लिये जरुरी है|
इंडियन एक्सप्रेस की हवाले से चाइना ने ८ अप्रैल २००९ को ऐसे दवाई की पेटेंट कराई है जिसमे गोमूत्र है और कैंसर के इलाज़ में उपयोगी साबित हो रही|
टाईम्स ऑफ इंडिया के अनुसार अमेरिका अब तक ४ ऐसी दवाएं पेटेंट करा चुका है जिसे ‘’कामधेनु अर्क’ नाम से राष्ट्रीय  स्वयं सेवक संघ के अनुसंधान केन्द्र और National Environmental Engineer Research Institute (NEERI) ने मिलकर बनाया| इस प्रयोग के अनुसार री - डिस्टिल्ड गोमूत्र में वो औषधीय गुण होता है जो DNA को oxidative  डैमेज से बचाता है जो कैंसर का कारक होता है|
आयुर्वेद में पेट सम्बन्धी कई बीमारियों के इलाज़ में गोमूत्र का उपयोग होता है|
एक नज़र दौडाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के  नज़र से भी| जापानी अध्ययन के अनुसार एक किलो बीफ पकाने में ३६ किलो  मात्रा में निकलती है  जितना २५० किलोमीटर यूरोपियन कार चलाने में ग्रीन हाउस गैस निकलती है| ये कोई मामूली मात्रा नहीं है|
इन पहलूओं पर गौर करके विवेक उपयोग करने की जरुरत है| धर्म और राजनीति से ऊपर उठकर बहुत से विषयों को अन्य दृष्टिकोण से भी परखने की जरुरत है|
स्वाति वल्लभा राज



2 comments:

  1. आपने बहुत अच्‍छे विषय को उठाया है। कुछ लोगों के लिए गाय आस्‍था का विषय है तो कुछ लोगों के लिए भोजन भी है। सबके अपने अपने अलग अलग मत हैं। मैं आपको बताना चाहूगां कि 95 प्रतिशत मुसलमानों की आबादी गाय के मांस का सेवन नहीं करती है। पर जो करते हैं उनके लिए यह हलाल है। दुनिया भर के ईसाई धर्मालंबी और तमम आदिवासी वासी जनजातियांं। जोकि हमारे नार्थ ईष्‍ट में हैं या जंगलों में निवास करती हैं। सभी गौमांस का सेवन करती हैं। पर आस्‍था के नाम पर गौ मांस खाने का पूरा ठीकरा मुसलमानों के ऊपर फोड़ दिया जाता है। वह भी इस वजह से कि वोट ज्‍यादा मिलते हैं।

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    1. इन्हीं सबसे तो ऊपर उठना और सोचना है ...आभार ...:)

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