मैं दरियां हूँ मुझे दायरों में बहने दो,
ना छेड़ो मुझे किनारों में सिमटने दो|
अस्तित्व में हूँ मुझे यु ही रहने दो
बिखर जाउंगी वरना,ऐसे ही चलने दो|
छुआ भी गर मुझे या तो सुख जाउंगी
या फिर उफान में सब कुछ डुबो जाउंगी|
जलने दो मुझे इस प्यास की आग में
दहक के बुझ कर खाक में मिल जाउंगी|
जलना और बहना ही मेरी किस्मत है
जल कर भी बहना यही मेरी फितरत है|
क्यों बैठते हो किनारों पर यूँ खामोश
सदियों का इंतज़ार ही मेरी इज्जत है|
स्वाति वल्लभा राज
ना छेड़ो मुझे किनारों में सिमटने दो|
अस्तित्व में हूँ मुझे यु ही रहने दो
बिखर जाउंगी वरना,ऐसे ही चलने दो|
छुआ भी गर मुझे या तो सुख जाउंगी
या फिर उफान में सब कुछ डुबो जाउंगी|
जलने दो मुझे इस प्यास की आग में
दहक के बुझ कर खाक में मिल जाउंगी|
जलना और बहना ही मेरी किस्मत है
जल कर भी बहना यही मेरी फितरत है|
क्यों बैठते हो किनारों पर यूँ खामोश
सदियों का इंतज़ार ही मेरी इज्जत है|
स्वाति वल्लभा राज
छुआ भी गर मुझे या तो सुख जाउंगी
ReplyDeleteया फिर उफान में सब कुछ डुबो जाउंगी|
जलने दो मुझे इस प्यास की आग में
दहक के बुझ कर खाक में मिल जाउंगी|
बहुत ही भावपूर्ण बेहतरीन रचना ...मन को छू गया ...!
मेरी नई पोस्ट के लिये आपका स्वागत है !
बहुत ही सुंदर रचना है ... आपकी भावनाओ का प्रस्तुतिकरण उम्दा होता है !!
ReplyDeletebehtarin nhavmayi abhivykti...
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