टूट गया फिर इक दर्द से ही,
क्या करें सब्र का बाँध ही तो है|
उफन पड़ी फिर अश्रु नदियाँ,
पगली,जिद्दी,नादान हीं तो है|
प्रहार किये बारम्बार जो
दर्द के कटार ने,
रक्त साखी टपक पड़ा स्वपन
मासूम,कमजोर,अनजान हीं तो है|
रौनक कैसे आएगी मुख पे,
हरियाली कैसे छाएगी?
चहुँ ओर दर्द का आनन
वो भी बंजर बियाबान हीं तो है|
जो देखा परिंदों को चुगते.उड़ते हुए,
बेफिक्र हो गगन में विचरते हुए|
और पाँख खोलें स्वयं के तो
पाया वो मृत.भयावह,श्मशान हीं तो है|
आस लगी दिल में की रोऊँ
पर पीर घनेरी कम लगी|
आज उन्मुक्त बह चले ये
मनः वेग अंधड़ सामान हीं तो है|
दुबोएंगी कितनो को ये
आज इस प्रवाह में
बेपरवाह है तत्काल ये
उलझी,उपेक्षित परेशान हीं तो हैं|
स्वाति वल्लभा राज
very nice....dil ke jajbato ka jwaar...sandaar:)
ReplyDeleteसुन्दर रचना, आभार.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी पधार कर अनुगृहीत करें.
दर्द को बेइन्तिहाँ जिया है इस रचना में ...
ReplyDeleteजो देखा परिंदों को चुगते.उड़ते हुए,
बेफिक्र हो गगन में विचरते हुए|
और पाँख खोलें स्वयं के तो
पाया वो मृत.भयावह,श्मशान हीं तो है|
बहुत खूबसूरती से लिखा है ..
मेरे ब्लॉग पर आने का आभार
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29 -12 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज... जल कर ढहना कहाँ रुका है ?
आस लगी दिल में की रोऊँ
ReplyDeleteपर पीर घनेरी कम लगी|
आज उन्मुक्त बह चले ये
मनः वेग अंधड़ सामान हीं तो है|
अंदर तक छू गईं यह पंक्तियाँ।
सादर
वाह ...भावमय करते शब्दों का संगम ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteअच्छी रचना..
bahut sundar bhavmayi rachana hai....
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना बहुत सुन्दर आभार
ReplyDeletePAHLI BAAR APKE BLOG PAR AANA HUA. APKO PADHNA ACCHHA LAGA. SASHAKT LEKHAN.
ReplyDeleteनमनाक नजारे खींचती गहरी रचना.
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