जलते हुए ख्वाबों के अध-जले
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|
तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|
वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|
वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
स्वाति वल्लभा राज
राख बटोरने हम चलें|
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
खुद को सौपने हम चलें|
तिनका-तिनका हो वजूद मेरा
जो बिखरा था तेरे आशियाने में,
गैरों की महफ़िल में अब
दामन में समेटने हम चलें|
वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
हमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|
वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
पर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
स्वाति वल्लभा राज
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
ReplyDeleteयाद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
ऐसी रोटियां सिकती कम जलती ज्यादा हैं ... मार्मिक प्रस्तुति
वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
ReplyDeleteपर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
याद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
क्या बात है शानदार रचना....मन भावुक हो गया....बेहतरीन।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पे आपका हार्दिक स्वागत है !
बहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
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जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है
bahut hi sundar abhivyakti .....वो रोटी तो अध-पकी ही रहेगी अब
ReplyDeleteपर साँसों के विराम को
इसी से रोकने हम चलें|
वो राख जिसमे अब भी मौजूद है
ReplyDeleteहमारे प्रेम की तपिश,
उस तपिश से ता-उम्र
रोटियां सेंकने हम चलें|... bahut hi badhiyaa
sundar bhavpurn rachana hai....
ReplyDeleteब्लॉग पर पधारने और समर्थन प्रदान करने का बहुत- बहुत आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,बधाई.
प्यार के इस इल्ज़ाम को भी
ReplyDeleteखुद को सौपने हम चलें|
बहुत खूब कहा है. आपका ब्लॉग अच्छा लगा. MEGHnet पर पधारने के लिए आभार.
सुंदर अभिव्यक्ति बेहतरीन भाव पूर्ण रचना,.....
ReplyDeleteनया साल सुखद एवं मंगलमय हो,....
मेरी नई पोस्ट --"नये साल की खुशी मनाएं"--
भावमय करते शब्दों का संयोजन ..बेहतरीन ।
ReplyDelete:) bahut hi acche
ReplyDeletebhut achhi rachna hae soch gahan hae bhav atirek post .
ReplyDeletewhat a thought ..bahut sundar..
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteअब कैसे बीनूं अधजले टुकड़े!! कैसे सृजन करूँ एक .. ख्वाब .....
ReplyDeleteउस तपिश से ता-उम्र
ReplyDeleteरोटियां सेंकने हम चलें
तपिश कायम रहे ....
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवो रोटी जो कभी सिकीं थी नरम
ReplyDeleteयाद तो बहुत आएगी|
पर तेरे नफरत की आग में जले
रोटियों को भूलने हम चलें|
....बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...