शाम के अंधेरों से डर लगता है,
दिन के उजालों में डर लगता है
ऐ ज़िन्दगी! क्या तू हीं है ये,
तेरे हर इशारों से डर लगता है|
रात की स्याह को
अजीब तिश्नगी की प्यास है,
दिन के उजियारे,
आजिज़ आरजुओं की लाश है,
सुलगते अरमान भी है काफ़िर हुए
ऐ कुदरत! तेरे काबू की दरकरार है|
दिल की लगी क्या कहें,अब
दिल्लगी से भी डर लगता है|
ऐ इश्क!हजारों रंग हों मुबारक चाहे,
खूनी लाल ख्वाइशों से डर लगता है|
स्वाति वल्लभा राज
bahut hi sundar rachna hai swati ji aur andaj bhi badhiya hai
ReplyDeleteवाह क्या बात है बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteअरुन =www.arunsblog.in
sundar rachna ...
ReplyDeleteवाह ! कमाल लिखा है..
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