Thursday, 6 September 2012

नारी



तू कृष्ण की प्रेयषी,
प्रेम और त्याग की अतुलनीय प्रतिमा,
तू राम की अर्धांगिनी,
साथ और पतिव्रतता की आगाध गाथा|

तू वंदनीय,तू अतुलनीय,
ममता,दया,करुना,वात्सल्य,की एकमेव प्रतिमा
तू अकथ,अथक सृष्टि है
जन्म ,पालन-पोषण की अविस्मरनीय गाथा|

जगत के आदि से अंत तक,
तेरी कीर्ति अनवरत चलती रहेगी,
ब्रम्हाण के हर काल में,
तेरी कृति हरसूं पलती रहेगी|

तू कोमलांगी पर सशक्त है
तू परदे में पर मुक्त है
हर श्वांस में तू लीन है
परमात्मा में विलीन है|

मीरा की प्रेम सी बावली,
दुर्गा रूप में तू तारिणी,
यशोदा  माँ सी निर्झरणी
काली रूप में मुंड धारणी|

चंचला-चपला तेरा स्वरुप है,
जाड़े की सर्द की तू धूप है,
तू अटल,अडिग,आरोह रूप,
नदी सी विस्तृत,नहीं है कूप|

नव युग की पहचान तू,
चहुँ और विख्यात ज्ञान तू,
नयी सोच,खोज का सम्मान तू
कला,संस्कृति और विज्ञान तू...

स्वाति वल्लभा राज

3 comments:

  1. bahut sundar swati ji naari ke swarup ka sundar chitran kiya hai aapne

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  2. बहुत ही बढ़िया

    सादर

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  3. उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिए आभार ..

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