तू कृष्ण की प्रेयषी,
प्रेम और त्याग की अतुलनीय प्रतिमा,
तू राम की अर्धांगिनी,
साथ और पतिव्रतता की आगाध गाथा|
तू वंदनीय,तू अतुलनीय,
ममता,दया,करुना,वात्सल्य,की एकमेव प्रतिमा
तू अकथ,अथक सृष्टि है
जन्म ,पालन-पोषण की अविस्मरनीय गाथा|
जगत के आदि से अंत तक,
तेरी कीर्ति अनवरत चलती रहेगी,
ब्रम्हाण के हर काल में,
तेरी कृति हरसूं पलती रहेगी|
तू कोमलांगी पर सशक्त है
तू परदे में पर मुक्त है
हर श्वांस में तू लीन है
परमात्मा में विलीन है|
मीरा की प्रेम सी बावली,
दुर्गा रूप में तू तारिणी,
यशोदा माँ सी निर्झरणी
काली रूप में मुंड धारणी|
चंचला-चपला तेरा स्वरुप है,
जाड़े की सर्द की तू धूप है,
तू अटल,अडिग,आरोह रूप,
नदी सी विस्तृत,नहीं है कूप|
नव युग की पहचान तू,
चहुँ और विख्यात ज्ञान तू,
नयी सोच,खोज का सम्मान तू
कला,संस्कृति और विज्ञान तू...
स्वाति वल्लभा राज
bahut sundar swati ji naari ke swarup ka sundar chitran kiya hai aapne
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार ..
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