Sunday, 16 September 2012

हो जाऊं बदरंग



हो जाऊं बदरंग,
ऐसा रंग भर दो मुझमें 
खामोश हो जाये ये जुबाँ,
ऐसी कहानी गढ़ दो मुझमें|

हौसलों के हौसले भी टूट कर 
बिखर गए हैं अब तो,
इनके पर क़तर दो
अपर हीं रहे ये मुझमें|

ना कल.ना आज,ना कल फिर,
बाकी रहे कोई,
ऐसी स्याही से लिखे पन्ने
जड़ दो मुझमें|

मरने की ख्वाइश भी 
ना जिए कभी अब,
ऐसी हसरत  भारी,
अभी भर दो मुझमें|

स्वाति वल्लभा राज








4 comments:

  1. "मरने की ख्वाइश भी
    ना जिए कभी अब,
    ऐसी हसरत भारी,
    अभी भर दो मुझमें|"

    मन को छू जाने वाली पंक्तियाँ

    सादर

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  2. बेहतरीन सुन्दर रचना.

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  3. इतनी निराशा भला क्यों ?

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