हो जाऊं बदरंग,
ऐसा रंग भर दो मुझमें
खामोश हो जाये ये जुबाँ,
ऐसी कहानी गढ़ दो मुझमें|
हौसलों के हौसले भी टूट कर
बिखर गए हैं अब तो,
इनके पर क़तर दो
अपर हीं रहे ये मुझमें|
ना कल.ना आज,ना कल फिर,
बाकी रहे कोई,
ऐसी स्याही से लिखे पन्ने
जड़ दो मुझमें|
मरने की ख्वाइश भी
ना जिए कभी अब,
ऐसी हसरत भारी,
अभी भर दो मुझमें|
स्वाति वल्लभा राज
"मरने की ख्वाइश भी
ReplyDeleteना जिए कभी अब,
ऐसी हसरत भारी,
अभी भर दो मुझमें|"
मन को छू जाने वाली पंक्तियाँ
सादर
बेहतरीन सुन्दर रचना.
ReplyDeleteइतनी निराशा भला क्यों ?
ReplyDeletenirasha se aasha ki or prasthan karti kavita.
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