Monday, 10 June 2013

रिश्ते



विश्वास,प्रेम,सहयोग पर
हर पल एक आघात है |
छल,बल और झपट की
चहुँ ओर झंझावात है|

मन शांत,विस्मित है ठगा सा
हर आस पर कुठाराघात है|
उम्मीद की हर एक किरण पर
लालच का वज्राघात है |

जिन रिश्तों को हम सींच कर
स्वपन मे हीं थे आकंठ निमग्न,
चतुरायी,स्वार्थ के फलों से
ना जने कैसे हुए आच्छन |


मद,लोभ में डूबे ये रिश्ते
क्या कभी उबर पाएंगे
या यूँ हीं स्वार्थ में डूबे
हमको डूबा दे जाएँगे|

स्वाति वल्लभा राज

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