दिखने को हरा -भरा मन
अंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|
यकीं आया था कल
जिन आँखों के प्यार पर|
समझ आया आज वहाँ
हवस और लूट है |
क्या करे कोई शिकवा और
गिला उस खुदाई से|
ना जाने किस तले
वो खामोश और मूठ है |
स्वाति वल्लभा राज
दिखने को हरा -भरा मन
ReplyDeleteअंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|
....बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
दिखने को हरा -भरा मन
ReplyDeleteअंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|
वाह.......बहुत खुबसूरत।