Tuesday, 18 June 2013

ठूँठ



दिखने को हरा -भरा मन
अंदर से ठूँठ है|
एहसासों कीं हो रही बिक्री
हर किरदार यहाँ झूठ है|

यकीं आया था कल
जिन आँखों के प्यार पर|
समझ आया आज वहाँ
हवस और लूट है |

क्या करे कोई शिकवा और
गिला उस खुदाई से|
ना जाने  किस तले
वो खामोश और मूठ है |

स्वाति वल्लभा राज

2 comments:

  1. दिखने को हरा -भरा मन
    अंदर से ठूँठ है|
    एहसासों कीं हो रही बिक्री
    हर किरदार यहाँ झूठ है|

    ....बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  2. दिखने को हरा -भरा मन
    अंदर से ठूँठ है|
    एहसासों कीं हो रही बिक्री
    हर किरदार यहाँ झूठ है|
    वाह.......बहुत खुबसूरत।

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