Sunday, 18 August 2013

आजाद है हम !



कल की गुलामी अंग्रेजों की थी,
पर आज तो हम आजाद हैं ना?
डर,आरजकता,लोभ,स्वार्थ अब,
हर कोने में आबाद  है|


बर्बर,डच,मुग़ल,तुगलक,
तो  एक के बाद एक थे आए|
अब तो आलम ये है प्यारे,
सारी नीचता एकजुट है छाये|

कल हीरे लूटे,मंदिर लूटे,
अस्मत की चादर छीनते आए,
आज इनमे से आज कौन बचा
विश्वास की लूट चार चाँद लगाए|

गुलामी की मोटी जंजीरें,
पहले से भी कसी हुई,
चेहरे और तरीके बदले,
नीयत वहीँ पर फसी हुई |

मत जगना,तुम हो 'आम नागरिक'
कोने मे दुबके सोये रहना,
किसी-किसी मौको पे कभी,
अंगडाई लेकर फिर सो जाना|

हम गुलाम कल थे आज भी है
बस मौके और हालात हैं बदले|
फितरत तो अब भी रक्त-चूषक
शोषक के अंदाज़ हैं बदले|

स्वाति वल्लभा राज

7 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति आज रविवार (18-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 89" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  3. स्वाति जी आपने आज की चिंता को और भी गहरा कर चिंतन को और भी कस दिया अभिव्यक्ति सुन्दर नहीं यथार्थ परक है बधाई नहीं कहूँगा चिंतन को जरी रखें शुभकामनाएं आप मेरे रीडिंग लिस्ट में शामिल हैं

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  4. सच को बयान करती रचना .... रक्षाबन्धन की शुभकामनायें !

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  5. बेहद सुन्दर रचना है स्वति… शानदार |

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  6. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    http://madan-saxena.blogspot.in/
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