गुमराह, तो कभी राह्परस्त है जिंदगी
गुलाम, तो कभी आजाद है जिंदगी,
चिल्लरों की फुहारों में ही सुकून तो कभी
दौलत की बारिश में,बेकरार जिंदगी ।
दाल-रोटी में खुश तो कभी
छप्पन भोग में तबाह जिंदगी ,
आह कभी तो वाह जिंदगी
उफ़ जिंदगी,हाय जिंदगी |
स्वाति वल्लभा राज
जीवन के विरोधाभास को व्यक्त करती एक सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसही कहा आपने ।
ReplyDeleteसादर
आह कभी तो वाह जिंदगी....sateek
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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