खुद भी नाचे, तुझे नचाये
गोल-गोल रोटियाँ ,
भूख है जिसके पैर दबाती
शहज़ादी रोटियाँ।
सरहद की गोली में देखो
नर्म-नर्म रोटियाँ,
कोठे के धंधे मे हंसती
गर्म-गर्म रोटियाँ।
भूखे-नंगों की चंदा जैसी
दूर हैं रोटियाँ,
चूल्हे की ठंडक में सिंकती
ख्वाब सी रोटियाँ।
बेबसी की राह में
गायब हैं रोटियाँ,
बेंच दो ईमान,धर्म तो
हाज़िर हैं रोटियाँ ।
खाते नहीं हो तुम हीं मगर
सिर्फ रोटियाँ,
बहरहाल तुम्हे भी तो
खाती है रोटियाँ ।
स्वाति वल्लभा राज
नर्म, गर्म स्वाति ने पकाई हैं रोटियाँ ……वाह बहुत ही बढ़िया |
ReplyDeleteSach ko bayaan karati rotiyan
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