Sunday, 8 December 2013

धड़कन में ''आप '' है




मन मयूर सा नाचे, अंखियों में अविरल धार है 
सच्चाई और निष्ठा के आगाज़ का अंदाज़ है
कब तक चुप रहते,सहते-कुढ़ते 
बेईमानी ना पल भर स्वीकार है । 

अंगड़ाई लेकर उठे हो अब की 
फिर तुम कहीं ना सो जाना 
सपूत हो,सपूत हीं रहना 
लालच के दरिया में तुम भी,हमसे कहीं ना खो जाना । 

कीचड़ में खिलने का साहस 
करता है केवल ''अरविंद''  हीं 
आत्म-विश्वास से लबरेज मन , सत्य पथ- प्रशस्त है 
साँसों में आस और धड़कन में ''आप '' है । 



स्वाति वल्लभा राज 

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