मन मयूर सा नाचे, अंखियों में अविरल धार है
सच्चाई और निष्ठा के आगाज़ का अंदाज़ है
कब तक चुप रहते,सहते-कुढ़ते
बेईमानी ना पल भर स्वीकार है ।
अंगड़ाई लेकर उठे हो अब की
फिर तुम कहीं ना सो जाना
सपूत हो,सपूत हीं रहना
लालच के दरिया में तुम भी,हमसे कहीं ना खो जाना ।
कीचड़ में खिलने का साहस
करता है केवल ''अरविंद'' हीं
आत्म-विश्वास से लबरेज मन , सत्य पथ- प्रशस्त है
साँसों में आस और धड़कन में ''आप '' है ।
स्वाति वल्लभा राज
bahut sundar rachna....................
ReplyDeleteshubhakamana rachana dharmita ke liye
ReplyDeleteअब तो जी बस "आप" ही "आप" है |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट भाव -मछलियाँ
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