मन के सफ़ेद गलीचे में
तुम तुरुप गए दो लाइन
काले रंग से ।
तुरपाई चाहे सिल दे फटे को
पर
जोड़ नहीं पायेगा
अंतर्मन के चीथड़े को,
और बदरंग भी तो कर गया
मेरे सुन्दर गलीचे को ।
तुम्हे क्या लगा
सजा दिया तुमने फिर से
और सज़ा माफ़,
पर हमारे बीच की खाई को
पाटना नमुमकिन है ।
खोल दी मैंने आज वो तुरपाई
और हो गयी मुक्त
तुम्हारे बंधन से,
वक़्त भर देगा इस जख्म को भी
और मेरा गलीचा होगा फिर से धवल ।
स्वाति वल्लभा राज
पूर्णता मोड
ReplyDeleteअभिव्यक्ति बेजोड़
भावना होड
eak nayi shuruaat..........
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