Wednesday, 23 December 2015

सौंदर्य




अधर गुलाब पंखुरी
बोली कूक अनायास । 
ग्रीवा सुराही समदर्शी
मुख चपला आभास ।
नैन ,प्रतिबिम्ब राजीव
भौंह अर्ध चन्द्र समान ।
चाल मदचूर हस्तिनी
वक्ष विंध्य सा जान ।
कटि नदी घुमाव
चरण कोमल पर्ण ।
आभा चांदनी छींटकी
नारी तू सुवर्ण ।
स्वाति वल्लभा राज

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