देखा मैंने आज
कचड़े के ढेर में
पड़ा तिरंगा ।
अंतर्मन भींग गया
एक पल में लाखों विचार
चीड़ फाड़ गए ।
हाथ गया कचड़े के डिब्बे में
और पनीली आँखों से
पोंछा तिरंगे का कचड़ा ,
अफरातफरी हर ओर
कार्यालय की मैडम ने
हाथ जो डाला था कूड़े में ,
''आपने क्यों निकला
हाथ गंदे हो गए ''
मन फिर भर गया
बोल कुछ नहीं पायी
सिर्फ तिरंगा दिखा दिया ,
किसी ने कहा मैडम
किसी ने कहा मैडम
जाता तो कूड़े में हीं है
मैं ठगी रह गयी ,
मगर जोर दे कहा
जाता होगा ,अपने आँख के सामने नहीं जाने दूंगी ।
सब ख़ामोशी के साथ
तितर बितर हो गए ।
मैं बस सोचती रह गयी
चार दिन पहले का
तिरंगे पर का भाषण
और अगर इसी कूड़े में
पड़ा होता इबादत के बाद
मूर्ति या कुरान ,गुरुग्रंथ के कुछ पन्ने
तब क्या होता ?
स्वाति वल्लभा राज
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