यक़ीनन हर रोज
अंदर कुछ मरता है मेरे,
जब भी तुझे
जगाने की बात करती हूँ ।
दोज़ख में दफन होती हैं
हर नाकामयाब कोशिश ,
जब भी जिस्म पर गड़े निशान
हटाने की बात करती हूँ ।
डायन भी सात घर छोड़
बच्चे उठाती, सुना है मैंने,
सहम जाती कोख मेरी जब भी
घर बसाने की
बात करती हूँ ।
स्वाति वल्लभा राज
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 01 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति ।
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