Sunday, 31 January 2016

घर बसाने की​ ​बात करती हूँ

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​यक़ीनन हर रोज
अंदर कुछ मरता है मेरे, 
जब भी तुझे 
जगाने की बात करती हूँ । 
दोज़ख में दफन होती  हैं 
हर नाकामयाब कोशिश , 
जब भी जिस्म पर गड़े निशान
हटाने की बात करती हूँ । 
डायन भी सात घर छोड़ 
बच्चे उठाती, सुना है मैंने,
सहम जाती  कोख मेरी जब भी
घर बसाने की
​ ​
बात  करती हूँ । 


स्वाति वल्लभा राज 

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 01 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. उम्दा प्रस्तुति ।

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