मन-मस्तिष्क के घोर तम को दूर कर
मानवता की शीतल शिशिर बन जाऊं|
लोभ,माया,द्वेष,विलासिता का दमन कर
स्थिर,प्रज्ञ,अडिग शिखर बन जाऊं|
हे शुभ्रा! मुझ अज्ञानी पर वरद-हस्त रख दे|
पावन ज्ञान-गंगा की निर्मल कुछ बूंद दे दें|
मनसा,वचसा,कर्मसा शुद्ध भाव पिरू हरसू ,
ऐसे मनकों की सुन्दर लड़ी बन जाऊं|
हे ज्ञान-दायिनी ये वर दे,
नभ की देद्विप्यामन नक्षत्र बनू मैं|
समस्त भू को आभा-मंडित करूँ
यूँ दीप्तिमान ज्योति सर्वत्र बनू मैं|
swati vallabha raj
बहुत ही बढ़िया ।
ReplyDeleteबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबंसतोत्सव की अनंत शुभकामनाऍं
ReplyDeletebahut hi sundar ....basant ki subhkamnaye
ReplyDeleteसमस्त भू को आभा-मंडित करूँ
ReplyDeleteयूँ दीप्तिमान ज्योति सर्वत्र बनू मैं|
......बिलकुल सही कहा आपने बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!