तुमने ऐसा क्यों
सोचा?
तुमने वैसा
क्यों किया?
लोगों को हर बार
तुम्हे अपनी बात क्यों समझानी पड़ती है?तुम
इतना अलग क्यों सोचती हो?क्या जिंदगी ऐसे चलती है?
कितनी गलतियाँ
करोगी और तुम?अक्ल कब आएगी तुम्हे?समझती क्यों नहीं?क्या वाकई मे तुम ऐसी हो?
कितने सारे सवाल
और सबका सिर्फ एक जवाब-मुझे नहीं समझ आती दुनियादारी| नफा नुकसान के तराजू मे मैं
हर बात नहीं तौल पाती|दम घुटने लगता है मेरा|तो क्या वाकई मुझे इस दुनिया मे रहने
का हक़ नहीं है?
अगर मैं बाकि
दुनिया कि तरह नहीं सोच पाती तो मैं क्या
करूँ?तुम मुझसे बदलने कि उम्मीद रखते हो ना?
थोड़ा नफे नुकसान
से ऊपर उठकर तुम हीं क्यों नहीं बदल जाते?एक बार इन सारे सवालों से ऊपर उठकर सिर्फ
अपने दिल कि क्यों नहीं सुन लेते|हम सब कुछ नहीं पा सकते हैं कभी|सब कुछ समेटने के
चक्कर मे आधार हीन होना तो अक्लमंदी नहीं
न?
सिर्फ एक बार
ऑंखें बंद करके बिना ये सोचे कि क्या पाएँगे और क्या खोयेंगे,सिर्फ खुद के एहसास
पर ऐतबार कर के आगे बढ़ो|जिंदगी भर ऊपर वाला तुम्हारा साथ देगा और नुकसान तो कभी
नहीं देगा|
मगर तुम ऐसा
नहीं सोच सकते|दुनियादारी कि पट्टी आँखों मे बंधकर तो कभी नहीं|चित्त तब शांत होता
है जब आकांक्षाएं शांत होती हैं|और ये अभिलाषाएँ यूँ हीं शांत नहीं होती|
जिस दिन तुम
सिर्फ अपने भावना कि पवित्रता पर भरोसा कर लोगे,तुम्हे और कुछ करने कि जरुरत नहीं
होगी|जीवन का उदेश्य तो सिर्फ एक हीं होता है|बाद बाकि तो माध्यम मात्र हैं|
एक बार मेरी तरह
खुद को भूल कर सिर्फ उस भावना कि शक्ति को पहचान लो जो सर्व-शक्तिमान है|जिसने
ममता,प्रेम,त्याग.वात्सल्य और न जाने कितने रूपों मे चिर काल से तीनों लोक पर
स्वामित्व बनाये रखा है,उस रूप पर विश्वास कर आगे बढ़ो|ना तो कोई सवाल मन को परेशां
करेगा और न मन उद्विग्न होगा|
बस एक बार मुझ
जैसा पागल बन जाओ|सिर्फ एक बार|
स्वाति वल्लभा राज