आँखों का रोना तो सब समझते नहीं,
दिल का रोना का क्या ख़ाक समझेंगे?
थक गयी आँखें,दिल भी रो-रोकर अब
चलो पत्थरों को हीं हमराज बनाएं|
गर पत्थरों ने हीं ये मुकाम बना लिया दिल में
फिर इंसानों कि बस्ती में हमारा क्या काम?
इंसानों के आगे सर पटक कर देख लिया बहुत
देखते हैं पत्थरों के साथ का भी अंजाम|
कूंच करें ये कारवां हम पत्थर दिल
इंसानों की महफ़िल से उस ओर अभी|
जहाँ मौन मूक पत्थर हीं साथ दें
और इंसानी फितरत से दूर हों ये ज़िन्दगी........
स्वाति वल्लभा राज.....
सुंदर "कठोर" रचना
ReplyDelete:-(
अनु
शायद पत्थर के सीने में दिल हो ...सुंदर रचना
ReplyDeleteआँखों का रोना तो सब समझते नहीं,
ReplyDeleteदिल का रोना का क्या ख़ाक समझेंगे?
खरी खरी बात
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन भाव संयोजन ।
ReplyDeleteसुन्दर गहन अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteथक गयी आँखें,दिल भी रो-रोकर अब
ReplyDeleteचलो पत्थरों को हीं हमराज बनाएं|
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शायद एक नूतन अंदाज़ होगा
जब पत्थर दिल का हमराज होगा
लगता है बहुतिकता के इस दौर दौरा में संवेदना की धारा सूख से गई है।
ReplyDeletebahut hi sundar
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