क्या वाकई हममें जीवन है या
वायरस सा गुण रखते हैं?
जीवित हैं हम, जो भावों से भरें
और भाव;स्वार्थ बिन डसते हैं|
निर्जीव पड़े स्व हित बिना
जड़ की श्रेणी में पलते हैं|
स्वार्थ,छल,मद,लालच सरीखे
पोषक तत्वों से फलते हैं|
अपनों से हीं प्रतियोगिता
उत्थान पे उनके जलते हैं|
अवसरवादी जो राह मिलें
उस पर अथक हम चलते हैं|
जीवन माने खुद में हम जब,
स्वार्थ सिद्धि से सधते हैं|
सजीव और निर्जीवों का
पुनः हो एक अवलोकन|
परखा जाये मानव को फिर
हैं मृत या उनमे है जीवन|
या फिर वायरसों सा अधिकृत
नूतन वर्ग बनाया जाये|
जिसमे मानव को नए श्रेणी
‘’अवसरवाद”में सजाया जाये|
स्वाति वल्लभा राज
excellent thought swati...
ReplyDeleteसजीव और निर्जीवों का
पुनः हो एक अवलोकन|
परखा जाये मानव को फिर
हैं मृत या उनमे है जीवन|
too good!!
anu ji dhanywaad....:)
Deleteक्या बात है ...वाह!
ReplyDeleteसादर
thank u yashwant ji....:)
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