Wednesday, 23 May 2012

दर्शन अभिलाषा (तांका)

मैंने तांका लिखने कि कोशिश की है| यह जापानी काव्य शैली है| १०० साल से भी ज्यादा पुरानी है| यह  विधा ९वीं शताब्दी  से १२ वीं शताब्दी के दौरान काफी प्रचलित हुई| हाइकु का  उद्भव इसी से हुआ है| इसकी संरचना ५+७+५+७+७ वर्णों की होती है|आप सभी का मार्ग-दर्शन प्रोत्साहन देगा|






मुरली वाले
गिरधर नागर 
दर्शन ईहा 
लालायित नयन 
प्रेम परागा मन|


पंथ निहारूं
खुद को समझाऊं
बंशी बजैया 
श्याम सलोना मुख 
दर्शन में हीं सुख|

स्वाति वल्लभा राज

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर भक्तिमय प्रस्तुति...

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    1. धन्यवाद कैलाश जी...आप लोगों का आशीर्वाद यूँ हीं रहे...

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  2. प्रयास सफल रहा और बहुत अच्छा लगा

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  3. सुन्दर प्रयास चंद शब्दों में मीरा की पीड़ा पिरोने का...
    भक्तिमय रचना

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