अनजाने में हीं शब्द
धराशायी कर देते हैं
मन को,
भावनाएं हो जाती हैं कुंठित
और वेदना से भरा मन
आंसुओं में ढुलकाते
चला जाता है
एहसासों की अस्थियां ।
धराशायी कर देते हैं
मन को,
भावनाएं हो जाती हैं कुंठित
और वेदना से भरा मन
आंसुओं में ढुलकाते
चला जाता है
एहसासों की अस्थियां ।
जरुरी नहीं हर शब्द
सुगढ़ और सुन्दर हों,
जरुरत है सिर्फ़
शब्दों को दूर रखने की
उस धारीपन से जो
भेंदते चले जाते हैं
प्रेम से पगे ह्रदय को
और कर देते हैं संज्ञाशून्य
आपके हर एहसास को ।
सुगढ़ और सुन्दर हों,
जरुरत है सिर्फ़
शब्दों को दूर रखने की
उस धारीपन से जो
भेंदते चले जाते हैं
प्रेम से पगे ह्रदय को
और कर देते हैं संज्ञाशून्य
आपके हर एहसास को ।
स्वाति वल्लभा राज
आपकी लिखी रचना शनिवार 17 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_14.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
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