समेटे हुये हूँ
तुम्हारा स्पर्श
अपनी हर साँस में,
मेरे हर ख्वाब
ज़िंदा हैं
तुम्हारे नाम पर,
हर वो लम्हे
जो जिये थे
तुम्हारे आगोश में
आज भी मुझे
ज़िंदा रखे हैं,
प्रेम वो नहीं
जो नाम का मोहताज हो,
सिंदूर की लाली हीं नहीं
गढ़ सकती हमारी कहानी ,
कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं ।
अपनी हर साँस में,
मेरे हर ख्वाब
ज़िंदा हैं
तुम्हारे नाम पर,
हर वो लम्हे
जो जिये थे
तुम्हारे आगोश में
आज भी मुझे
ज़िंदा रखे हैं,
प्रेम वो नहीं
जो नाम का मोहताज हो,
सिंदूर की लाली हीं नहीं
गढ़ सकती हमारी कहानी ,
कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं ।
स्वाति वल्लभा राज
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html
ReplyDeleteरिश्ता हर कोई पवित्र होता है ... हाँ किसी नाम का मोहताज़ भी नहीं होता ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
बढ़िया लिखा है.. शुभकामनाएं..
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeletesundar bhav swatiji
ReplyDeleteरिश्ते तो मन के गुलाम होते हैं ... सुंदर
ReplyDelete☆★☆★☆
सिंदूर की लाली हीं नहीं
गढ़ सकती हमारी कहानी ,
कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं
अधूरा है तो पूर्ण कहां ?
हमारी संतुष्टि के लिए पर्याप्त हो सकता है संभवतः...!
आपका अभिप्राय भी यही है न आदरणीया स्वाति वल्लभा राज जी ?
सुंदर कविता के लिए हृदय से साधुवाद !
आपके ब्लॉग की कुछ अन्य रचनाएं भी पढ़ीं...
सभी के लिए आभार !
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
जी … अधूरापन का एहसास इसलिए क्योंकि सांसारिक बंधन में बंध नहीं पाएं। … ऐसी स्थिति पूर्णता का एहसास दिलाते हुए भी खुद को अधूरा रखती है...:)
Deleteआपने अन्य रचनाओं को भी पढ़ा इसलिए दिल से आभारी हूँ ...:)
सभी आदरणीय जनों का दिल से धन्यवाद .....
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