Wednesday, 7 May 2014

अधूरे-अनाम रिश्ते




समेटे हुये हूँ 
तुम्हारा स्पर्श
अपनी हर साँस में,
मेरे हर ख्वाब
ज़िंदा हैं
तुम्हारे नाम पर,
हर वो लम्हे
जो जिये थे
तुम्हारे आगोश में
आज भी मुझे
ज़िंदा रखे हैं,
प्रेम वो नहीं
जो नाम का मोहताज हो,
सिंदूर की लाली हीं नहीं
गढ़ सकती हमारी कहानी ,
कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं ।
स्वाति वल्लभा राज

9 comments:

  1. http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html

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  2. रिश्ता हर कोई पवित्र होता है ... हाँ किसी नाम का मोहताज़ भी नहीं होता ...
    बहुत खूब ...

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  3. बढ़िया लिखा है.. शुभकामनाएं..

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  4. रिश्ते तो मन के गुलाम होते हैं ... सुंदर

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  5. ☆★☆★☆



    सिंदूर की लाली हीं नहीं
    गढ़ सकती हमारी कहानी ,
    कुछ अधूरे-अनाम रिश्ते भी
    सम्पूर्ण और पवित्र होते हैं

    अधूरा है तो पूर्ण कहां ?
    हमारी संतुष्टि के लिए पर्याप्त हो सकता है संभवतः...!

    आपका अभिप्राय भी यही है न आदरणीया स्वाति वल्लभा राज जी ?
    सुंदर कविता के लिए हृदय से साधुवाद !

    आपके ब्लॉग की कुछ अन्य रचनाएं भी पढ़ीं...
    सभी के लिए आभार !

    मंगलकामनाओं सहित...
    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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    1. जी … अधूरापन का एहसास इसलिए क्योंकि सांसारिक बंधन में बंध नहीं पाएं। … ऐसी स्थिति पूर्णता का एहसास दिलाते हुए भी खुद को अधूरा रखती है...:)

      आपने अन्य रचनाओं को भी पढ़ा इसलिए दिल से आभारी हूँ ...:)

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  6. सभी आदरणीय जनों का दिल से धन्यवाद ​.....

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