अनीह ईषना
Tuesday, 4 August 2015
मनुष्य
बेहयाई में नहायी तुम्हारी निगाहें
बेशर्मी में लिपटी तुम्हारी सोच
''अहम् '' में सिमटा सम्पूर्ण वजूद
निकृष्ट से भी गिरे कर्म
और हसास्यपद विचार ''मनुष्य '' होने का
स्वाति वल्लभा राज
1 comment:
संजय भास्कर
28 August 2015 at 15:07
वाह क्या बात है ,बिल्कुल सटीक सवाल है
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वाह क्या बात है ,बिल्कुल सटीक सवाल है
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