Tuesday, 4 August 2015

मनुष्य



बेहयाई में नहायी तुम्हारी निगाहें 
बेशर्मी में लिपटी तुम्हारी सोच 
''अहम् '' में सिमटा सम्पूर्ण  वजूद 
निकृष्ट से भी गिरे कर्म 
और हसास्यपद विचार ''मनुष्य '' होने का 

स्वाति वल्लभा राज 

1 comment:

  1. वाह क्या बात है ,बिल्कुल सटीक सवाल है

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