रविश जी के '' इश्क़ में शहर होना'' पढ़ने के बाद
''इश्क़ में कहीं ताज़ और कहीं महल बने
कहीं अनकहे बोल और कहीं ग़ज़ल बने
सदियाँ भी कम पड़ी,और सिर्फ कहीं पहर बने
हीर मजनूँ ना सही, तेरे इश्क़ में हम शहर बने '…
कहीं अनकहे बोल और कहीं ग़ज़ल बने
सदियाँ भी कम पड़ी,और सिर्फ कहीं पहर बने
हीर मजनूँ ना सही, तेरे इश्क़ में हम शहर बने '…
स्वाति वल्लभा राज
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