नहीं दिखा तुम्हे मेरा दर्द,
मेरी पीड़ा और मेरा डर
मेरे घुटते शब्दों के साथ
मेरा मरता वजूद
करते गए तुम अनदेखा ।
दिखे तुम्हे सिर्फ मेरे दो उभार
जो सींचते है सृष्टि का आधार
पर तुम्हारे लिए तो वो थे
गुलाब के फूल ,मखमल में लपेटे
रौंदते गए जिसे तुम ,
और दिखा तुम्हे
अपनी मर्दानगी साबित करने का द्वार
वो द्वार जो नयी संरचना को जन्म देती है
उसमे तुम रचते गए
कलंक, घृणा ,मद |
तिस पर भी जी नहीं भरा
तो नोच खसोट दिया मेरा जिस्म ,
रक्त रंजीत मेरा शरीर,आत्मा और अस्तित्व
पड़े रहे निढाल,
और अट्टहास करता शब्द ''बलात्कार ''
स्वाति वल्लभा राज
मैं तो दंग हूं चित्र देख कर। सब कुछ बयां कर रही है।
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