ज़लालत भरे इस जिंदगी को संवारने जहां में कहीं यक़ीनन मेरा करीम होगा.
दर्द हद से पार कब का गुज़र गया इसके इख्तेताम को मयस्सर कोई हाकिम होगा .
बुत बने खुदा के नूर पाने को तालीमो में मुकम्मल कोई तालीम होगा.
न थम मेरे अश्क दरिया सा बहता जा , कोई तो कतरा उसे अज़ीम होगा .
स्वाति वल्लभा राज
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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