अर्धनारीश्वर रूप कभी,
पूजित हुआ संसार में|
१४ वर्ष अवध सीमा पे
खड़े,राम इंतज़ार में|
पैदाइश पे रोष कलह
उपेक्षित मैं निंदनीय,कृति|
साँसों की जंजीर क्यों?
अवांछनीय मैं तृतीय प्रकृति|
मारना हीं जुर्म क्यों?
पैदा करना क्यों नहीं|
पैदाइश दुत्कार,अफ़सोस
तो क्या ये गुनाह नहीं|
absolute !!
ReplyDeleteपढ़ कर विचलित हूँ...निःशब्द हूँ..
ReplyDeleteअति सुन्दर सृजन..
ReplyDeleteसोच की दिशाएं कहती हैं - जाने कितने जवाब अभी कैद हैं प्रश्नों की आस में
ReplyDeleteबेहद उम्दा विश्लेषण किया है………सार्थक
ReplyDeleteगहन विचार अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत उदद्वेलित करती है आपकी यह कविता।
ReplyDeleteसादर