हमारे समाज में अभी भी ऐसी कुरीतियाँ मुहं बाएं खड़ी हैं जो मानव जीवन को मृत्यु तुल्य कष्ट देतीं हैं।ऐसी ही एक कुरीति है मृत्यु-भोज।आर्थिक एवं मानसिक स्थिति चाहे जैसी भी हो,अगर एक भव्य भोज आयोजन ना किया जाये तो परिवार को सामाजिक तिरष्कार और बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।कारण बताया जाता है कि मरने वाले कि आत्मा को शांति नहीं मिलती।यह भोज कितना उचित है ,इसका फैसला आप करें।
http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/2012/03/blog-post.html
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सच में,सामजिक कुरीतियाँ लील जाती हैं गरीबों को.....मृत्यु भोज जितना खर्च इलाज में कराते तो शायद मौत ही ना आती...
ReplyDeleteसार्थक रचना..
विचारोत्तेजक!
ReplyDeletekuch baaten sochne ke liye hoti hai ye bhi vaisi hai par ....hum samajik tiraskar se jyada apnon ko parlok me milne wale sukh aur punya ki chintaon se ye karm karte hai .... mafi chahta hun par ... ye us insaan ke samman me hota hai jisne puri jindagi apne apno ke naam kar di ....aayojan chahe bhavya na ho par aavojan aur pujan to hona chahiye !! virakt hote sadhu ...apna insaani chola utarte waqt to aapne parlok ki vyavastha kar lete hai ... fir hum to samanya jan hai !!
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