मन उद्विग्न,तिस पर कुत्तें भी हैं रो रहे|
कौन सा सुकून दूँ,ऐ मन तुझे जो खो रहे|
सोचा उठ रही हूँ ऊपर अपने हरेक दर्द से|
कैसे उमड़ी अश्रु नदियाँ;बंदिनी,वशित फिर मर्म से|
कतरा आँसू का हर,अमिट छाप मन पर छोड़ता|
चेहरा तो धो लूँ मगर ये दाग दिल पर कुरेदता|
जाने क्या विपदा झेले अब ये मन और ये आत्मा|
डर के साये में सिसकती,पलती,जियेगी मनोकामना|
swati vallabha raj
्सुन्दर भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteआपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDelete----------------------------
कल 23/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
itna dard, itna vishad kyun hain? halanki mujhe thodi kam samjh aati han itni gehri kavitayen, fir bhi...
ReplyDeletesundar abhivyakti!
ये डर के साये जिनमें मनोकामना पलटी है ॥ सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteक्या कहूँ!!!!!
गहन विचार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर भाव....
सुंदर!
ReplyDeleteचित्र भी सटीक।
bahut gahan soch liye hue bhaavabhivyakti bahut pasand aai.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसोचा उठ रही हूँ ऊपर अपने हरेक दर्द से|
ReplyDeleteकैसे उमड़ी अश्रु नदियाँ;बंदिनी,वशित फिर मर्म से|
तकलीफ जब हद से गुज़र जाती है .....
तो ऐसा ही सैलाब बनकर बाहर आती है .....दर्द की.... छूती हुई अभिव्यक्ति !!!!!
सुन्दर !
ReplyDelete