बासठ तो कभी दो सौ फीट,
चालीस है तो कहीं पचासी घंटें|
प्रशासन ने तय किये
बेहतरीन काल सुशासन के|
संदीप,अमित,आरती,गीता
डूब गए बोरेवेल में|
सारिका.कार्तिक,किंजल,माही
भरे गए सक्सेस होल में|
२००६ से २०१२ तक
विकास की खूब गाथा रही|
प्रिंस और अंजू तो बचे
भागते भूत की लंगोट भली|
मत जागना अब भी
हिंद के शासक|
गधे बेच के यूँ हीं सोते रहना|
ऐवें हीं खुले गड्ढों में औ
भविष्य को जिंदा गाड़ते रहना
स्वाति वल्लभा राज
ये सचमुच सोचने का विषय है
ReplyDeleteसमसामयिक .... शासक भी सोये रहते हैं और जनता भी भगवान भरोसे जीती रहती है ...
ReplyDeleteप्रासंगिक है ..
ReplyDeleteअति सुन्दर लिखा है.....
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