ये पंक्तियाँ मैथली शरण गुप्त जी कि “यशोधरा” से
प्रेरित हैं|
जग कल्याण
हित लिये वो गए
आत्म-गौरव
औ मान की ये बात
कैसे बनी मैं
महालक्ष्य-बाधक
मुझ पर ये
असहय आघात
चोरी औ छिपे
गए अँधेरी रात,
नारी बाधक
मुक्ति मार्ग की कैसे
घोर व्याघात,
महा भिनिष्क्रमण
आभाषित था
स्वाभाविक विचार,
लुक छिप के
गृह त्याग निर्णय
शोभित क्या
सिद्धार्थ?
स्वाति वल्लभा राज
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
हमें भी प्रेरित करती पंक्तियां हैं।
ReplyDeleteगुप्त जी की कविता को चोका में बहुत सुन्दरता से उतारा है...बधाई !!
ReplyDeleteधन्यवाद...:)
Deleteलुक छिप के
ReplyDeleteगृह त्याग निर्णय
शोभित क्या सिद्धार्थ?
सार्थक प्रश्न
though I didn't understand it fully...
ReplyDeletegiven my ignorance of hindi literature.. but it was a nice read !!!
कैसे बनी मैं
ReplyDeleteमहालक्ष्य-बाधक
मुझ पर ये
असहय आघात
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चोरी औ छिपे
गए अँधेरी रात,
नारी बाधक
मुक्ति मार्ग की कैसे
घोर व्याघात,
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लुक छिप के
गृह त्याग निर्णय
शोभित क्या सिद्धार्थ?
इन प्रश्नों का उत्तर खुद सिद्धार्थ के पास भी नहीं था.....!!
फिर दोषी कौन.....??
हमारे ब्लॉग पर पधारने के लिए ह्रदय से आभार. आपकी रचना खूब भाई. सिद्धार्थ बुद्ध तो बन ही गए थे!
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteसादर।
अच्छे शब्द ,,,अच्छे शब्द
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ ...औरों को भी प्रेरित करेंगी.
ReplyDeleteआभार