Tuesday, 26 June 2012

चोका


चोका [ लम्बी कविता] पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में  महाकाव्य की  कथाकथन शैली रही है । प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।इसका नियम इस प्रकार  है -

5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि  समापन करते समय  इस क्रम के अन्त में  7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए । 
इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या    ही होगा  ।




नारी जीवन
फटी औ बदरंग
कोरी अधूरी
चुनर में लिपटी
मृतप्राय सी
सिसकती रहती
ये देखकर,
है आज भी अबला
शक्ति की पुंज,
कोख में हीं मरती
प्राण  दायिनी,
नहीं चढ़ती सिर्फ
दहेज-बलि
हर पल चढ़ती
अग्नि वेदी पे
बढती तो फिर भी
अग्नि पथ पे
पर धूमिल औ हैं
सुसुप्त एहसास|

स्वाति वल्लभा राज

8 comments:

  1. बहुत बढ़िया


    सादर

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  2. ek nayapan liye hue....bahdiya prayas

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  3. बहुत सटीक और सुंदर रचना

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  4. शक्ति की पुंज,
    कोख में हीं मरती

    बहुत विसंगतियाँ हैं, सुन्दर भाव

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  5. सुंदर रचना

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. बढती तो फिर भी
    अग्नि पथ पे
    पर धूमिल औ हैं
    सुसुप्त एहसास|
    झंझकोरती एहसास !

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