चोका [ लम्बी कविता] पहली से तेरहवीं शताब्दी में जापानी काव्य विधा में महाकाव्य की कथाकथन शैली रही है । प्राय: वर्णनात्मक रहा है । इसको एक ही कवि रचता है।इसका नियम इस प्रकार है -
5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7+5+7 और अन्त में +[एक ताँका जोड़ दीजिए।] या यों समझ लीजिए कि समापन करते समय इस क्रम के अन्त में 7 वर्ण की एक और पंक्ति जोड़ दीजिए ।
इनका कुल पंक्तियों का योग सदा विषम संख्या ही होगा ।
नारी जीवन
फटी औ बदरंग
कोरी अधूरी
चुनर में लिपटी
मृतप्राय सी
सिसकती रहती
ये देखकर,
है आज भी अबला
शक्ति की पुंज,
कोख में हीं मरती
प्राण दायिनी,
नहीं चढ़ती सिर्फ
दहेज-बलि
हर पल चढ़ती
अग्नि वेदी पे
बढती तो फिर भी
अग्नि पथ पे
पर धूमिल औ हैं
सुसुप्त एहसास|
स्वाति वल्लभा राज
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर
ek nayapan liye hue....bahdiya prayas
ReplyDeleteबहुत सटीक और सुंदर रचना
ReplyDeleteशक्ति की पुंज,
ReplyDeleteकोख में हीं मरती
बहुत विसंगतियाँ हैं, सुन्दर भाव
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 28 -06-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... चलो न - भटकें लफंगे कूचों में , लुच्ची गलियों के चौक देखें.. .
सुंदर रचना
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ReplyDeleteबढती तो फिर भी
ReplyDeleteअग्नि पथ पे
पर धूमिल औ हैं
सुसुप्त एहसास|
झंझकोरती एहसास !